यूक्रेन युद्ध के चलते अफगानिस्तान संकट से हटा विश्व का ध्यान
यूक्रेन युद्ध के चलते अफगानिस्तान संकट से हटा विश्व का ध्यान
काबुल:
अफगानिस्तान में 2005 के बाद उच्चतम स्तर की पीड़ा देखी गई है। ये जानकारी गैलप सर्वेक्षण से सामने आई है।टोलो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, गैलप मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, बीते साल अगस्त में तालीबान ने 40 मिलियन की आबादी वाले अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया, तभी से वहां लगभग सभी अफगानों (94 प्रतिशत) का जीवन भयंकर कष्ट में गुजर रहा है।
गैलप के निष्कर्षों के आधार पर, महिलाओं की पीड़ा में वृद्धि हुई है, तकरीबन 96 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवन को इतनी खराब रेटिंग दी है।
सर्वेक्षण के अनुसार, अफगानों की दैनिक आय में गिरावट और गरीबी ने लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया है।
गैलप के अनुसार, 96 प्रतिशत अफगान महिलाएं और 92 प्रतिशत पुरुष पीड़ित हैं, जबकि 82 प्रतिशत आश्रय और भोजन की कमी से पीड़ित हैं। 75 फीसदी महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित होने का शिकार हो रही हैं, जबकि 56 फीसदी लोग देश छोड़ने की मांग कर रहे हैं।
सर्वेक्षण ने पूर्व सरकार के पतन के बाद से देश में गरीबी की दर 95 प्रतिशत से अधिक रखी है।
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने अफगान के लोगों की खराब आर्थिक स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि देश में लाखों लोग आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, अफगानिस्तान में 2.3 करोड़ लोग इस समय भूखमरी की कगार पर हैं और 95 प्रतिशत अफगानों के पास 24 घंटे में तीन बार खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है।
आरएफई/आरएल ने बताया कि अफगानिस्तान तेजी से भुखमरी, बाल कुपोषण से चिह्न्ति स्वास्थ्य संकट और तालिबान के देश पर कब्जा करने के बाद से आवश्यक सेवाओं के पतन के बीच हाल के इतिहास में सबसे खराब मानवीय संकटों में से एक में घिर गया है।
इस स्थिति को शुरू में बड़े पैमाने पर मौत और विनाश को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने उदार दाताओं को मदद के लिए प्रेरित किया।
लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण 10 लाख से अधिक नागरिकों के पड़ोसी यूरोपीय देशों में पलायन करने के बाद अब अफगानिस्तान के संकट से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान हटा है।
अफगानिस्तान, दुनिया के सबसे अधिक सहायता-निर्भर देशों में से एक है। वहां पिछले साल अगस्त में तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषण और मानवीय सहायता खोने के बाद देश तेजी से एक हताश मानवीय संकट में घिर गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, व्यापार में उल्लेखनीय कमी और सूखे की मार ने नुकसान को बढ़ा दिया, यहां तक कि देशों ने नए सिरे से फंड और सहायता देने का वादा किया और तालिबान को समर्थन किए बिना उन्हें वितरित करने के तरीकों की तलाश की।
लेकिन वह सहायता पहुंचने में वक्त लग रहा है और तालिबान के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों ने देश की आर्थिक स्थिति को मुश्किल में ला दिया है।
व्यक्तियों और संगठनों को अफगानिस्तान में पैसा भेजने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जहां बैंक कौलैप्स होने की कगार पर हैं।
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