तालिबान रत्ती भर नहीं बदला, लड़कियों को नहीं जाने दे रहा विदेश पढ़ने
अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित आतंकी संगठन तालिबान का आज अफगानिस्तान में शासन है. सरकार बनाते वक्त तालिबान ने कट्टरता के चोले को उतार बदले रूप-स्वरूप में काम करने का दावा किया था. हालांकि वह रत्ती भर भी नहीं बदला है.
highlights
- लड़कियों औऱ महिलाओं को झेलनी पड़ रही हैं कई पाबंदियां
- अब विदेश जाकर लड़कियों के पढ़ने जाने की नहीं दी अनुमति
- मीडिया में कार्यरत 80 फीसदी महिलाओं को छोड़ना पड़ा काम
काबुल:
काबुल में रह रहे कुछ लड़के-लड़कियां दोनों ही विदेश जाकर पढ़ाई करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन तालिबान ने लड़कियों को काबुल छोड़ विदेश जा पढ़ाई करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है. अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी फौज की वापसी और यूएस समर्थित सरकार के गिरने के बाद सितंबर 2021 में तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार बनाई थी. समावेशी के बजाय अपनी मर्जी से कट्टर चेहरों को लेकर बनाई गई तालिबान सरकार ने महिलाओं के बाहर काम करने पर रोक लगा दी और स्कूलों को भी लैंगिक आधार पर लड़के-लड़कियों में बांट दिया. लड़कियों को कक्षा छह के बाद पढ़ाई की अनुमति नहीं है. यही नहीं, तालिबान ने ताकत के जोर पर महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढंकना अनिवार्य कर दिया. और तो और, महिलाएं मनोरंजन से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा तक नहीं ले सकती हैं. पार्क में जब पुरुष टहल रहे हों, तो महिलाओं का प्रवेश वर्जित कर दिया है.
महिलाओं और लड़कियों पर लागू हैं कई कड़े नियम
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर दो दशकों बाद फिर से कब्जा करने के बाद तालिबान ने ऐसे कानून बनाए, जो कई मायनों में मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं. खासकर महिलाओं और लड़कियों के लिए तालिबान ने कट्टर नियम-कायदे लागू कर रखे हैं. तालिबान ने पुरुष रिश्तेदार के बगैर महिलाओं के आवागमन पर रोक लगा रखी है. सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को चेहरा ढंक कर घर से निकलना होता है. यह नियम टीवी पर एंकरिंग करने वाली महिलाओं पर भी लागू होता है. तालिबान ने उस तंत्र को भी तहस-नहस कर दिया, जो लैंगिक हिंसा को रोकता था. और तो और, तालिबान ने स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच तक में रोड़े लगा रखे हैं. महिला कार्यकर्ता काम नहीं कर सकती हैं और महिला अधिकारों की बात करने वालों को तालिबानी सजा दी जाती है. अगस्त 2021 में सत्ता में वापसी करते ही तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों के शिक्षा के अधिकार, काम करने और स्वतंत्र आवाजाही पर कड़ी रोक लगाई है. करेला वह भी नीम चढ़ा की तर्ज पर घरेलू हिंसा का शिकार महिलाओं को सुरक्षा देने और मदद करने वाले तंत्र ही खत्म कर दिया. महिलाओं के कड़े नियम-कायदों में जरा सी चूक पर उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है. इसके साथ ही अफगानिस्तान में नाबालिगों की जबरिया शादी के मामलों में भी तेजी आई है. कह सकते हैं तालिबान के कट्टर नियम-कायदे आम लोगों का जीना मुहाल किए हुए हैं.
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18 मिलियन महिलाएं अधिकारों के लिए कर रही कड़ा संघर्ष
कट्टर नियम-कायदों के मद्देनजर कई मानवाधिकार संगठनों ने तालिबान से अपनी नीतियों में आमूल-चूल बदलाव करने का आह्वान किया है. खासकर महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को बहाल करने की मांग लगातार उठ रही है. हालांकि तालिबान ने पहले पहल समावेशी समाज और महिला-पुरुष बराबरी का दर्जा बरकरार रखने का वादा किया था. यह अलग बात है कि तालिबान के काम उस वादे के बिल्कुल उलट हैं. महिलाओं की आवाजाही, शिक्षा और अभिव्यक्ति की आजादी पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार तालिबान ने महिलाओं के स्मार्ट फोन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है. साथ ही ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें महिला कल्याण मंत्रालय महिलाओं को जरूरी सुरक्षा उपलब्ध कराने के एवज में घूस लेता है. मीडिया में काम करने वाली 80 फीसदी महिलाओं को काम छोड़ना पड़ा है. वैश्विक संस्थाओं का मानना है कि 18 मिलियन महिलाओं को स्वास्थ्य,शिक्षा और सामाजिक अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है.
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