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श्री श्री रविशंकर बने वैश्विक नागरिकता दूत, अमेरिकी यूनिवर्सिटी ने दिया सम्मान

विश्वविद्यालय ने रविशंकर को उनके शांति कार्यों, मानवीय कार्यों, आध्यात्मिक गुरु और वैश्विक अंतरधार्मिक नेता के तौर पर काम करने के लिए यह सम्मान दिया है.

Updated on: 10 Feb 2021, 12:14 PM

वॉशिंगटन:

भारतीय आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर (Sri Sri Ravishankar) को अमेरिका के एक प्रख्यात विश्वविद्यालय ने ‘वैश्विक नागरिकता दूत’ के तौर पर मान्यता दी है. विश्वविद्यालय ने रविशंकर को उनके शांति कार्यों, मानवीय कार्यों, आध्यात्मिक गुरु और वैश्विक अंतरधार्मिक नेता के तौर पर काम करने के लिए यह सम्मान दिया है. एक वक्तव्य के अनुसार, ‘नार्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर स्पिरिचुअल्टी, डायलॉग एंड सर्विस’ ने रविशंकर को पिछले सप्ताह वैश्विक नागरिकता दूत के तौर पर मान्यता दी. रविशंकर ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता को पुनर्जीवित करने के लिए इंडिया अगेंस्ट करप्शन और वर्ल्ड फोरम फॉर एथिक्स इन बिजनेस जैसे आंदोलनों को चलाया तथा समर्थन दिया है. विश्वविद्यालय में कार्यकारी निदेशक और आध्यात्मिक सलाहकार (चैपलेन) अलेक्जेंडर लेवेरिंग कर्न ने कहा, 'हम श्री श्री के आभारी हैं. वैश्विक नागरिकता दूत कार्यक्रम शुरू करने के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता था. हम एक प्रसन्नचित्त मानवीय कार्यकर्ता से वार्ता करेंगे और उनसे सीखेंगे. उन्होंने हमारे सर्वोत्तम साझा मानवीय मूल्यों को जीवन में उतारा है.'

156 देशों में आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र
श्री श्री रवि शंकर संसारभर में एक आध्यात्मिक और मानववादी गुरु हैं. उन्होंने तनावमुक्त एवं हिंसामुक्त समाज की स्थापना के लिए एक अभूतपूर्व विश्वव्यापी आंदोलन चलाया है. विभिन्‍न कार्यकर्मों और पाठ्यक्रमों, आर्ट ऑफ लिविंग एवं इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज सहित संगठनों के एक नेटवर्क तथा 156 देशों से भी अधिक देशों में तेजी से बढ़ रही उपस्थिति से रविशंकर अब तक अनुमानतः 45 करोड़ लोगों तक पहुंच चुके हैं. गुरुदेव ने ऐसे अनोखे एवं प्रभावशाली कार्यक्रमों का विकास किया है, जिन्‍होंने व्‍यक्ति को वैश्विक, राष्‍ट्रीय, सामुदायिक और व्यक्तिगत स्तरों पर चुनौतियों से निपटने के लिए सशक्त, सुसज्जित और परिवर्तित किया है.

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चार साल की उम्र से कर रहे गीता पाठ
1951 में दक्षिणी भारत में जन्मे गुरुदेव प्रतिभासम्पन्न संतान थे. चार साल की उम्र में ही वे भगवद गीता का पाठ करने में सक्षम थे और अक्सर ध्यान में लीन पाए जाते थे. उनके पास वैदिक साहित्य और भौतिकी दोनों ही डिग्रियां हैं. 1982 में गुरुदेव भारत के कर्नाटक राज्‍य स्थित, शिमोगा में दस दिनों के मौन में गए और वहीं पर एक शक्तिशाली श्‍वास तकनीक सुदर्शन क्रिया का जन्म हुआ. समय के साथ सुदर्शन क्रिया आर्ट ऑफ लिविंग के पाठ्यक्रमों का केंद्र बिंदु बन गयी. गुरुदेव ने आर्ट ऑफ़ लिविंग को एक अंतरराष्ट्रीय, गैर-लाभकारी, शैक्षिक और मानववादी संगठन के रूप में स्‍थापित किया. आर्ट ऑफ लिविंग के शैक्षणिक एवं आत्म-विकास के कार्यक्रम तनाव को समाप्‍त कर कल्याण की भावना को बढ़ावा देने वाले शक्तिशाली साधन प्रदान करते हैं.