भारत ही नहीं, दुनिया के कई बड़े देश हैं Twitter की मनमानी के खिलाफ

सभी का एक सुर में यही कहना था कि किसी व्यक्ति या संस्था के विचार लिखने-पढ़ने से रोकने का अधिकार किसी एक व्यक्ति यानी ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी के पास नहीं होना चाहिए.

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Nihar Saxena
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सिर्फ भारत ही नहीं कई बड़े देश भी है ट्विटर की मनमानी के खिलाफ( Photo Credit : न्यूज नेशन)

ऐसा पहली बार नहीं है कि सोशल मीडिया साइट ट्विटर (Twitter) अपने मनमाने और अड़ियल रवैये को लेकर आलोचना के केंद्र में है. इसके पहले भी कई देशों में ट्विटर की मनमानी को लेकर आवाजें उठी हैं. हाल ही में अमेरिका (America) के राष्ट्रपति जो बाइडन के चुनाव जीतने पर भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के समर्थकों की ओर से वॉशिंगटन स्थित कैपिटल बिल्डिंग में की गई हिंसा के बाद भी ट्विटर को मुखर विरोध का सामना करना पड़ा था. खासकर यह आलोचना ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को हमेशा के लिए प्रतिबंधित किए जाने को लेकर उठी थी. इन आलोचकों में फ्रांस (France), जर्मनी (Germany) सरीखे देशों के अलावा वे नेता और विशेषज्ञ भी शामिल थे, जो ट्रंप की नीतियों को पसंद नहीं करते थे. सभी का एक सुर में यही कहना था कि किसी व्यक्ति या संस्था के विचार लिखने-पढ़ने से रोकने का अधिकार किसी एक व्यक्ति यानी ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी के पास नहीं होना चाहिए. खासकर यह देखते हुए कि सोशल मीडिया ट्रंप के पूरे कार्यकाल में उनके दुष्प्रचार को फैलाने का माध्यम बनी रहीं. अब सत्ता से बाहर होने के बाद ट्रंप के खिलाफ लामबंद हो रही हैं. 

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जर्मनी की चांसलर मुखर
गौरतलब है कि ट्विटर ने ट्रंप को स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया है. इस कदम के खिलाफ जिन शख्सियतों ने आवाज उठाई है, उनमें जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल भी हैं. मर्केल के ट्रंप से अच्छे रिश्ते नहीं रहे, लेकिन अब उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया के ताजा रुख से ये जरूरत और ज्यादा महसूस हुई है कि इन कंपनियों पर कड़े नियम लागू करने की जरूरत है. मर्केल के प्रवक्ता ने ट्रंप के खिलाफ लगे प्रतिबंध को गलत बताया. उन्होंने कहा, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार में दखल दिया जा सकता है, लेकिन ऐसा कानून में परिभाषित नियमों के तहत होना चाहिए. ऐसा सोशल मीडिया कंपनियों के प्रबंधन के फैसलों के तहत नहीं हो सकता.'

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फ्रांस भी जता चुका है एतराज
फ्रांस सरकार ने भी ट्रंप पर लगे प्रतिबंध को लेकर एतराज जताया है. फ्रांस के विदेश मंत्री ब्रुनो ली मायर ने कहा कि हालांकि ट्रंप के झूठ निंदनीय हैं, लेकिन ट्विटर का अपने प्लेटफॉर्म से ट्रंप के सभी ट्विट डिलीट कर देने का फैसला सही नहीं है. उन्होंने कहा, डिजिटल दुनिया का विनियमन डिजिटल कुलीनतंत्र (ऑलिगार्की) नहीं कर सकता. फ्रांस के डिजिटल मामलों के उप मंत्री सेद्रिक ओ ने भी सोशल मीडिया कंपनी के ताजा व्यवहार पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा- सोशल मीडिया कंपनियां सार्वजनिक चर्चा का विनियमन सिर्फ अपने टर्म एंड कंडीशन के तहत कर सकती हैं. इसलिए ऐसा लगता है कि अमेरिका में उन्होंने जो कदम उठाए हैं, वो लोकतांत्रिक नजरिए से सही नहीं हैं.

यूरोप तो काफी समय से पहले लगा है नकेल कसने में
यूरोप में पहले से ही सोशल मीडिया कंपनियों को नियमित करने की कोशिश चल रही है. कुछ समय पहले ही यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने इन कंपनियों के विनियमन का एक दस्तावेज जारी किया था. इन प्रयासों के पीछे जिन लोगों की प्रमुख भूमिका है, उनमें एक थियरी ब्रेटॉन भी हैं. उन्होंने वेबसाइट पोलिटिको.ईयू पर लिखे एक लेख में कहा है- 'यह बात परेशान करने वाली है कि एक सीईओ अमेरिकी राष्ट्रपति के लाउ़डस्पीकर का प्लग मनमाने ढंग से खींच सकता है. इससे इन कंपनियों की ताकत का अंदाजा तो लगता ही है, साथ ही इससे यह भी जाहिर होता है कि हमारा समाज डिजिटल स्पेस को संगठित करने के लिहाज से कितना कमजोर है.' इसी सिलसिले में ईयू के कूटनीति प्रमुख जोसेफ बॉरेल ने एक ब्लॉग में लिखा है कि यूरोप में सोशल मीडिया नेटवर्कों के लिए बेहतर विनियमन की जरूरत है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए ऐसा किया जाना चाहिए. इसे स्वीकार करना संभव नहीं है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां अपने नियमों के तहत अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेंट का विनियमन करें.

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ट्विटर की सेंसरशिप के खिलाफ है रूस
ट्विटर के खिलाफ आवाज रूस से भी उठी है. वहां के मशहूर विपक्षी नेता अलेक्सी नावालनी ने इसे सेंसरशिप का अस्वीकार्य कदम कहा है. उन्होंने कहा कि ट्विटर ने किसी नियम के तहत ये कार्रवाई की ये किसी को नहीं मालूम. ये कदम भावनाओं और निजी राजनीतिक प्राथमिकता के आधार पर उठाया गया है. रूस के सरकारी मीडिया कर्मी व्लादीमीर सोलोवियेव ने कहा है कि इस कदम से ऐसा लगता है कि अमेरिकी संविधान ट्विटर कंपनी के अंदरूनी दस्तावेजों से कम महत्वपूर्ण है.

अमेरिका में भी स्वर हैं मुखर
अमेरिका में सोशल मीडिया के कई विशेषज्ञों ने कहा है कि किसी व्यक्ति पर संपूर्ण प्रतिबंध लगाने का अधिकार सोशल मीडिया कंपनियों को नहीं दिया जाना चाहिए. कैलिफोर्निया में प्रोफेसर और सोशल मीडिया रिसर्चर रमेश श्रीनिवासन ने ऑनलाइन चैनल डेमोक्रेसी नाउ से बातचीत में कहा कि ये कंपनियां वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ पहले से ऐसा करती रही हैं. अब अमेरिका में बदले राजनीतिक माहौल के बीच उन्होंने ट्रंप को निशाना बनाया है. उन्हें अगर नहीं रोका गया, तो आखिरकार इसका सबसे अधिक खामियाजा वामपंथ को ही उठाना होगा.

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अब भारत से भी खोला मोर्चा
इन देशों के बीच भारत का भी ट्विटर से सीधा मोर्चा खुल गया है. भारत में चल रहे किसान विरोध आंदोलन में भड़काने और उकसाने वाले ट्वीट्स की संलिप्तता देखकर मोदी सरकार ने ट्विटर से 1178 अकाउंट बंद करने कहा था. हालांकि विचारों के मुक्त प्रवाह की वकालत करते हुए ट्विटर ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. इसके जवाब में भारत की ओर से भी तीखी प्रतिक्रिया दी गई और कहा गया कि देश के कानून सर्वोपरि हैं. गौरतलब है कि ग्रेटा थनबर्ग और रिहाना के भारत विरोधी और किसान आंदोलन समर्थित ट्वीट्स को खुद ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने लाइक किया था. 

HIGHLIGHTS

  • भारत ही नहीं कई अन्य देश भी ट्विटर की मनमानी के खिलाफ
  • डोनाल्ड ट्रंप के अकाउंट को स्थायी बंद करने के बाद आवाज मुखर
  • अधिकांश देश सोशल मीडिया पर कुछ प्रतिबंध लगाने के पक्षधर
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