काठमांडू. नेपाल में पिछले 50 दिनों से चल रहे लॉक डाउन के बीच यहां का राजनीतिक माहौल अचानक गरमा गया है. लॉक डाउन के बावजूद यहां सडकों पर भारत विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं. सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता भारतीय दूतावास का घेराव कर रहे हैं. नेपाल सरकार की तरफ से यहां के विदेश मंत्रालय भारत के खिलाफ प्रेस वक्तव्य निकाल रहा है. सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष के नाते नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, प्रचण्ड जैसे बड़े नेता से लेकर छोटी राजनीतिक पार्टी के नेता, नेपाल का नागरिक समाज, बुद्धिजीवी, पत्रकार और देश के सभी मीडिया शनिवार दोपहर बाद से अचानक भारत विरोध में उतर आए हैं. भारत के लिए सबसे बड़ा झटका उस समय लगा जब भारत के सबसे करीबी माने जाने वाले नेता और राजनीतिक दल भी उसके विरोध में उतर गए. नेपाल में जबरदस्त विरोध के बाद देर शाम नई दिल्ली से विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता को अपनी सफाई देनी पड़ गई.
क्या है मामला?
भारत के रक्षा मंत्री ने शनिवार को उत्तरखण्ड के धारचूला से लेकर चीन की सीमा लिपुलेख तक सड़क निर्माण के काम का उद्घाटन किया. रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 90 किलोमीटर के इस रास्ते के निर्माण के बाद अब कैलाश मानसरोवर जाने वाले श्रद्धालुओं को काफी आसानी हो जाएगी. इस नए रास्ते से या तो ट्रैकिंग के जरिये या फिर गाड़ी से चीन की सीमा तक तक पहुंचा जा सकता है. जिससे मानसरोवर दर्शन के लिए जाने वाले श्रद्धालुओं को कम से कम दो से तीन हफ्ते की बचत होगी.
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पिछले 21 वर्षों से इस सड़क का काम चल रहा था. 2015 में चीनी राष्ट्रपति के भारत भ्रमण के समय दोनों देशो के बीच समझौते के बाद इस काम में तेजी आई अब जाकर ट्रैक खोलने का काम पूरा हो गया है. भारतीय सेना के मातहत रहे बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने इस अत्यंत कठिन काम को किया है जिसके बाद कल स्वयं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक ने बीआरओ की तारीफ़ की थी.
नेपाल की आपत्ति
लिपुलेक भारत चीन और नेपाल का ट्राइजंक्सन है. यहीं एक महाकाली नदी निकलती है जो तीनों देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा है. नेपाल का मानना है कि भारत ने नेपाल के हिस्से वाले भूभाग में भी सड़क निर्माण किया है. नेपाल और भारत के बीच 1816 सुगौली संधि के हिसाब से नेपाल का दावा है कि उत्तराखंड के साथ लगने वाली उसकी सीमा पर भारतीयों का कब्जा है और कालापानी, लिपुलेक तथा लिम्पियाधुरा तीनो ही नेपाल की भूमि है.
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1962 में चीन ने जब भारत पर आक्रमण किया था उसी समय से इस क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की उपस्थिति है. भारतीय सैनिकों की उपस्थिति पर भी नेपाल को आपत्ति है. यह बात नेपाल के चुनावों में हमेशा उठाए जाते रहे हैं. भारत विरोधी माहौल तैयार कर यहाँ की वामपंथी सरकार अच्छा खासा वोट पाती है. अभी कोरोना महामारी से पहले भी भारत ने जम्मू काश्मीर, लद्दाख और पाक अधिकृत काश्मीर के हिस्से के साथ अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया.
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जिस पर नेपाल में करीब एक महीनो तक भारत विरोधी प्रदर्शन, भारतीय झंडा और मोदी का पुतला जलाने का काम किया गया था. पुरे नेपाल में भारत विरोधी माहौल बनाया गया था और पहली बार यह विरोध प्रदर्शन नेपाल-भारत सीमा तक पहुंचा था. इस बार भी नेपाल सरकार की तरफ से विदेश मंत्रालय ने लंबा चौड़ा विज्ञप्ति निकालते हुए भारत द्वारा सड़क निर्माण किए जाने पर अपना विरोध दर्ज किया है.
काठमांडू की सड़को पर प्रदर्शन
शनिवार की दोपहर को लिपुलेक में भारत द्वारा सड़क बनाए जाने की खबर आते ही लॉक डाउन के बीच सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और भारतीय दूतावास का भी घेराव किया. हालांकि नेपाल पुलिस ने स्थिति पर नियंत्रण पा लिया. इसी तरह नेपाल के सभी राजनितिक दल ने भारत के इस कदम का विरोध किया है. नेपाल की सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली, माओवादी नेता प्रचंड, पूर्व प्रधानमंत्री डा बाबूराम भटराई, नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउवा सहित सभी दलों ने विरोध में विज्ञप्ति निकाला है या अपने ट्विटर के जरिये विरोध किया है. सभी राजनीतिक दल अलग-अलग तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
भारतीय पक्षधर दलों की खामोशी
सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि भारत के पक्ष में रहने वाले दल भारत विरोधी लहार में खुद के राजनैतिक फायदे के लिए विरोध कर रहे हैं. नेपाल में मधेशी दलों को हमेशा ही भारत का समर्थक और भारत के पक्ष में वकालत करने वाला समझा जाता था. लेकिन भारत की दखलंदाजी और राजनीतिक दल के छोटी छोटे-छोटे बातों में भी हस्तक्षेप के कारण एक मात्र मधेशी दल राष्ट्रीय जनता पार्टी का वामपंथी विचारधारा वाली समाजवादी पार्टी में विलय हो गया है. विलय से पहले चाहे काश्मीर का मुद्दा हो या सीमा अतिक्रमण का हमेशा यही दल भारत के पक्ष में खुल कर अपनी बात रखता था और संसद से लेकर सड़क तक हमेशा ही भारत के पक्ष में आवाज उठाता था.
भारत की सफाई, नहीं हुआ अतिक्रमण
काठमांडू की सड़को पर भारत विरोधी प्रदर्शन के बाद भारत ने अपनी स्थिति साफ की है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सफाई देते हुए नेपाल की भूमि पर किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से इनकार किया है. भारत ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए अपनी ही भूमि पर सड़क निर्माण करने की बात कही है. साथ ही नेपाल के साथ विवादित सीमाओं के बारे में डिप्लोमैटिक चैनल के जरिये बातचीत के लिए तैयार रहने की बात भी कही है.
Source : Punit K Pushkar