Nepal Elections: बगैर विचारधारा के गठबंधनों के बीच चीन और भारत भी बने प्रमुख मुद्दे

इस बार राजनीतिक पार्टियां अति राष्ट्रवाद के मसले पर एक-दूसरे के सामने हैं. संभवतः यही वजह है कि संप्रभुता और हाशिये पर रह रही आबादी की संवैधानिक सुरक्षा के साथ-साथ भारत और चीन भी नेपाल के मतदाताओं के समक्ष बड़े मुद्दे हैं.

इस बार राजनीतिक पार्टियां अति राष्ट्रवाद के मसले पर एक-दूसरे के सामने हैं. संभवतः यही वजह है कि संप्रभुता और हाशिये पर रह रही आबादी की संवैधानिक सुरक्षा के साथ-साथ भारत और चीन भी नेपाल के मतदाताओं के समक्ष बड़े मुद्दे हैं.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
Nepal Elections

नेपाल में अति राष्ट्रवाद के मसले पर भी वादों की होड़.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

रविवार को नेपाल (Nepal) में मतदान होना है. पॉलिसी रिसर्च ग्रुप POREG के मुताबिक इस बार राजनीतिक पार्टियां अति राष्ट्रवाद के मसले पर एक-दूसरे के सामने हैं. संभवतः यही वजह है कि संप्रभुता और हाशिये पर रह रही आबादी की संवैधानिक सुरक्षा के साथ-साथ भारत और चीन भी नेपाल के मतदाताओं के समक्ष बड़े मुद्दे हैं. मुख्य मुकाबला मध्यमार्गी नेपाल कांग्रेस नीत गठबंधन और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी यूनाइटेड मार्क्सवादी लेनिनवादी (UML) नीत गठबंधन के बीच है.  यूएमएल चीन (China) के प्रति अपने झुकाव को छिपाए बगैर पारस्परिक समानता केंद्रित विदेश नीति पर जोर दे रहा है. इसके साथ ही वह बेहद संवेदनशील क्षेत्रीय मसलों को लेकर मैदान में है. यूएमएल का वादा है कि नेपाल की क्षेत्रीय अखंडता किसी भी कीमत पर सुरक्षित रखी जाएगी. POREG के मुताबिक ओली खेमा इसके साथ पांच लाख नए रोजगार, खाद्य सुरक्षा और मेक इन नेपाल संस्कृति के साथ मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में है. 

Advertisment

अजब-गजब गठबंधन
माओवादी विद्रोह के अगुवा और प्रचंड के नाम से लोकप्रिय दो बार के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल राष्ट्रपति प्रणाली सरीखी सरकार और पूर्ण आनुपातिक चुनावी तंत्र का दावा कर रहे हैं. गौरतलब है कि प्रचंड ने ही नेपाल की राजशाही पर पर्दा डालने का काम किया था. हालांकि वह नेपाल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, जो यूएमएल की तर्ज पर सीधे-सीधे मुख्य कार्यकारी के निर्वाचन का विरोध करती हैं. इनके अलावा चुनावी समर में दक्षिणपंथी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) समेत भारत के साथ खुली सीमा वाले तराई इलाके की विभाजित मधेसी पार्टियां भी मुकाबले में हैं. आरपीपी राजशाही की वापसी के वादे के साथ मैदान में है. इसके साथ ही उसने सभी धर्मों की स्वतंत्रता के साथ नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया हुआ है. इसके अलावा त्रिस्तरीय संघीय ढांचे का खात्मा भी इसका प्रमुख चुनावी वादा है. रोचक बात यह है कि चुनावी समर में आरपीपी ने यूएमएल के साथ गठबंधन किया हुआ है, जो पूरी तरह से राजशाही के विरोध में है. 

यह भी पढ़ेंः Badrinath Dham: 235 वर्ष बाद बद्रीनाथ धाम में शुरू होगी अनूठी परंपरा, जानिए कब बंद हो रहे हैं कपाट

पूरे न हो सकने वाले वादों की भरमार
आम मतदाताओं में इस बात की चर्चा है कि अगर कोई भी गठबंधन सत्ता में आता है तो विरोधाभासी विचारों के साथ कैसे काम करेगा. पीओआरईजी की रिपोर्ट के मुताबिक अन्य तमाम पार्टियां और समूह भी कम विचित्र वादों और संकल्पों के साथ जनादेश हासिल करने की इच्छा रखते हैं. मतदाताओं से इन्होंने जो वादे किए हैं, वे पूरे ही नहीं किए जा सकते हैं. इसके साथ ही ये वादे और संकल्प संविधान की भावना के विपरीत भी हैं. सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए जीतने की संभावनाएं इस धारणा से पोषित है कि किसी एक राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सकता. ऐसे में सरकार बनाने के लिए विचारधारा रहित गठबंधन अस्तित्व में आ गए हैं. विचारधारा के अभाव में साथ आए राजनीतिक दल वास्तव में 2015 में लागू संविधान की मूल भावना पर ही हमला कर रहे हैं. माओवादी और माधव नेपाल के नेतृत्व वाले सीपीएन ने नेपाल कांग्रेस समेत संयुक्त समाजवादियों के साथ तालमेल किया हुआ है. हालांकि दोनों ही 2017 में केपी शर्मा ओली के साथ चुनाव लड़े थे. संभवतः इसी कारण प्रचंड और  माधव को यूएमएल के तीखे हमलों का सामना करना पड़ रहा है. 

अति राष्ट्रवाद की भावना का ज्वार
रविवार को होने वाले मतदान के लिए चुनाव प्रचार धीमी गति के साथ 3 नवंबर से शुरू हुआ था, लेकिन वोटिंग का दिन करीब आते-आते प्रचार अभियान गति पकड़ता गया. संसद के निचले सदन की 165 सीटों और प्रांतीय विधानसभाओं की 330 सीटों के लिए मतदाता कल अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. गौरतलब है कि पिछले चुनाव में अति राष्ट्रवाद और संप्रभुत्ता की रक्षा वामपंथियों का मुख्य एजेंडा था. ये दोनों मुद्दे इस बार भी केंद्र में हैं, लेकिन लोकलुभावन घोषणाएं भी जमकर की गई हैं. नेपाल के पहाड़ी इलाकों समेत घाटी में वाह्य हस्तक्षेप से मुक्त स्थायी सरकार का नारा भी सभी राजनीतिक पार्टियों ने मतदाताओं के समक्ष उठाया है. इसके अलावा समानता का अधिकार, सामाजिक न्याय और जनजातियों समेत मधेसी, थारू समेत अन्य का कल्याण भी पार्टियों के संकल्प में शामिल है. 

यह भी पढ़ेंः इंदिरा गांधी के सात फैसलों से बदले देश के हालात, पाकिस्तान को मिली करारी हार

ये भी हैं चुनावी वादे
नेपाल कांग्रेस नीत गठबंधन सुशासन का वादा कर केपी शर्मा ओली को निशाने पर लिए हुए है. नेपाल कांग्रेस का आरोप है कि ओली ने लोकतंत्र को खत्म कर संविधान को रौंद डाला है. वे इस हिमालयी राष्ट्र के लोगों को सुनहरे वादों से लुभा कर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील करते आए हैं. इसके अलावा पड़ोसी देशों भारत और चीन के साथ बेहतर संबंध, राष्ट्रीय संप्रभुत्ता और समानता आधारित विदेश नीति, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक न्याय और स्वास्थ्य देखभाल का वादा जनादेश हासिल करने के लिए किए गए वादों में प्रमुख है. तराई के मतदाताओं को लुभाने के लिए नेपाल कांग्रेस गठबंधन हाशिये पर पड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने का वादा भी कर रहा है. 

HIGHLIGHTS

  • नेपाल संसद और विधानसभा के लिए रविवार को मतदान
  • बगैर विचारधारा के साथ बनाए गए हैं राजनीतिक गठबंधन
अति राष्ट्रवाद भारत nepal चीन केपी शर्मा ओली INDIA Pushpa Kamal Dahal Prachanda पुष्प कमल दहल प्रचंड नेपाल Ultra Nationalism china KP Sharma Oli आमचुनाव General Elections
      
Advertisment