तिब्बत पर यूएन मानवाधिकार की भूतपूर्व प्रमुख मिशेल की अनिश्चित विरासत
मिशेल की इस साल मई में चीन की विवादास्पद यात्रा की शुरुआत बदनाम 17 प्वाइंट एग्रीमेंट की वर्षगांठ पर हुई थी. 1951 में इस समझौते को बीजिंग प्रशासन ने जबरन तिब्बत पर थोपा था.
highlights
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेकलेट का कार्यकाल खत्म
- चार साल के कार्यकाल में मिशेल ने तिब्बत का मसला कतई नहीं उठाया
- शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के दमन से भी मुंह फेर लेने का आरोप
लहासा:
अंततः कई विवादों के केंद्र में रहने वाली संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेकलेट का कार्यकाल बुधवार को पूरा हो गया. उन पर चीन से नजदीकी संबंधों के कारण शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के दमन को दबाने का आरोप लगता रहा. हालांकि अपने कार्यकाल के आखिरी दिन मिशेल (Michelle Bachelet) ने उइगर (Uyghurs) मुसलमानों पर अत्याचार दिखाती रिपोर्ट जारी कर दी. इसके अलावा मिशेल को संयुक्त राष्ट्र में अपने चार साल के मानवाधिकार प्रमुख के कार्यकाल में तिब्बत का मसला भी वैश्विक मंच पर नहीं उठाने का एक गंभीर आरोप है. यही वजह है कि उनके कार्यकाल को 'अप्रासंगिक और अनिश्चित' करार दिया जा रहा है, क्योंकि लगातार आह्वान के बावजूद मिशेल ने तिब्बत (Tibet) का मसला एक बार भी वैश्विक मंच पर नहीं उठाया. मिशेल के कार्यकाल में अगर तिब्बत का जिक्र कहीं हुआ भी तो इस साल मई में उनके चीन (China) दौरे के दौरान. तिब्बत के लिए संघर्ष कर रहे कार्यकर्ताओं और संगठनों ने मिशेल से कई बार तिब्बत जाकर असलियत जानने की मांग की गई, लेकिन उनकी तरफ से ठंडी प्रतिक्रिया ही सामने आई.
चीन यात्रा के दौरान तिब्बत पर गोलमोल जवाब
मिशेल की इस साल मई में चीन की विवादास्पद यात्रा की शुरुआत बदनाम 17 प्वाइंट एग्रीमेंट की वर्षगांठ पर हुई थी. 1951 में इस समझौते को बीजिंग प्रशासन ने जबरन तिब्बत पर थोपा था. इसके तहत चीन ने औपचारिक रूप से तिब्बत का विलय कर लिया था. अपने चीन दौरे की समाप्ति पर मिशेल जो बयान जारी किया था, उसमें ही तिब्बत का जिक्र था. चीन दौरे की समाप्ति पर पूछे गए सवाल के जवाब में मिशेल ने कहा था, 'स्वायत्तशासी तिब्बत क्षेत्र के लिए जरूरी है कि उनकी भाषागत, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनी रहे. इसके साथ ही तिब्बतवासियों को उनके धार्मिक रीति-रिवाजों पर खुलकर बोलने और राय-मशविरा में शामिल होने की इजाजत देनी चाहिए.' इस दौरान मिशेल ने कहा था, 'मैंने स्वायत्तशासी तिब्बत क्षेत्र में बच्चों की उनकी अपनी मातृभाषा और संस्कृति में सीखने पार चर्चा की.' हालांकि तिब्बत को लेकर इस गोलमोल बयान पर मिशेल की चौतरफा आलोचना हुई. मिशेल पर चीन के उइगर मुसलमानों के दमन और तिब्बत के चीनीकरण पर बात करने का ऐतिहासिक अवसर गंवा देने का आरोप लगा.
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तिब्बत की भू-सांस्कृतिक पहचान मिटा रहा है चीन
तिब्बत मसले और विद्यमान हालातों में वहां जारी संकट पर वैश्विक जागरूकता न के बराबर है. इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा तिब्बत से सूचनाओं और खबरों पर लगाई कड़ी रोक जिम्मेदार है. गौरतलब है बीजिंग प्रशासन हान चीनी पर्यटकों को तिब्बत में प्रवेश की इजाजत देता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों, सिविल सोसाइटी के सदस्यों और यहां तक निर्वासित जीवन जी रहे तिब्बतियों को भी तिब्बत में प्रवेश की इजाजत नहीं है. हान चीनी पर्यटकों से एक तो बीजिंग प्रशासन को राजस्व प्राप्त होता है. दूसरे हान पर्यटक पोटाला पैलेस को चीनी पर्यटक स्थल बतौर प्रचारित करते हैं. यही चीन का असली उद्देश्य भी है. बीजिंग प्रशासन तिब्बत की परंपरागत भू-सांस्कृतिक पहचान मिटाने के हरसंभव जतन कर रहा है. हाल ही में तिब्बत के कुछ इलाकों में आए श्रृंखलाबद्द भूकंपों के बाद तो सीसीपी ने सूचनाओं पर ही लॉकडाउन लगा दिया है. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर मूल वासी कोई स्थानीय फोटो भी शेयर नहीं कर सकते हैं. यहां तक कि तिब्बतियों के आत्मदाह की कुछ घटनाओं की भी सच्चाई जानने का कोई जरिया निर्वासित जी रहे तिब्बतियों के पास नहीं है. ऐसे में तिब्बत के मसले की नितांत अनदेखी मिशेल बेकलेट के लिए एक दाग सरीखी बन गई है. खासकर यह देखते हुए कि मिशेल खुद रिफ्यूजी हैं और उनसे उम्मीद क जा रही थी कि वह अपने ही घर में शरणार्थी बन रह रहे तिब्बतियों की व्यथा समझेंगी.
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