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भारत के सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने नेपाल के PM ओली से की मुलाकात

सरहद पर बिगड़ते संबंधों के बीच भारत के सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली से मुलाकात की है.

Updated on: 06 Nov 2020, 02:47 PM

काठमांडू :

सरहद पर बिगड़ते संबंधों के बीच भारत के सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली से मुलाकात की है. यह मुलाकात प्रधानमंत्री के बालूवाटार स्थित निवास पर हुई है. जनरल नरवणे तीन दिवसीय दौरे पर काठमांडू में हैं. इससे पहले उन्होंने एक विशेष समारोह में हिस्सा लिया था, जिसमें प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली भी मौजूद थे. इसमें भारतीय राजदूत विनय एम क्वात्रा और दोनों देशों के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए थे.

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भारतीय थल सेना के प्रमुख जनरल एम एम नरवणे को गुरुवार को इस विशेष समारोह में राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने नेपाली सेना के जनरल की मानद उपाधि प्रदान की. यह दशकों पुरानी परंपरा है जो दोनों सेनाओं के बीच के मजबूत संबंधों को परिलक्षित करती है. इस परंपरा की शुरूआत 1950 में हुई थी. जनरल के एम करियप्पा पहले भारतीय थलसेना प्रमुख थे, जिन्हें 1950 में इस उपाधि से सम्मानित किया गया था.

भारतीय दूतावास द्वारा यहां जारी एक बयान के अनुसार, समारोह के बाद जनरल नरवणे ने राष्ट्रपति भंडारी से मुलाकात की और इस सम्मान के लिए उनका आभार व्यक्त किया. उन्होंने द्विपक्षीय सहयोग में और वृद्धि के उपायों पर भी चर्चा की. उनके साथ भारतीय राजदूत क्वात्रा भी थे. वहीं नेपाल के थलसेना मुख्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, उन्होंने द्विपक्षीय हितों के मुद्दों के अलावा दोनों सेनाओं के बीच मित्रता और सहयोग के मौजूदा बंधन को और मजबूत बनाने के उपायों पर चर्चा की. उनकी यह यात्रा काफी हद तक दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के मकसद से हो रही है.

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यहां इस बात का उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि लद्दाख में चीन के साथ तनातनी के बीच भारत और नेपाल के रिश्तों में भी कड़वाहट आई. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा 8 मई को उत्तराखंड के धारचूला से लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी रणनीतिक सड़क का उद्घाटन करने के बाद नेपाल ने विरोध जताया था, तब से दोनों देशों के संबंधों में तनाव आ गया था. लिहाजा इस पूरे विवाद को खत्म करने के इरादे से ही एमएम नरवणे नेपाल पहुंचे हैं.

भारत द्वारा सेना प्रमुख को नेपाल भेजने के फैसले को नई दिल्ली द्वारा म्यांमार, मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान और अफगानिस्तान के साथ संबंधों में नई ऊर्जा भरने की व्यापक कवायद का हिस्सा माना जा रहा है. चीन द्वारा क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के प्रयासों के मद्देनजर ऐसा किया जा रहा है.