रूस से अच्छे संबंधों के बाद भी, भारत को ट्रॉयका में नहीं मिल पा रही जगह?
भारत और रूस के हमेशा से ही अच्छे सम्बंध रहे हैं. चाहे हम इतिहास की किसी भी घटना पर नज़र डालें, हमेशा भारत और रूस के संबंध मधुर ही रहे हैं. लेकिन जब बात ट्रॉयका में भारत को जगह देने की आती है, तो रूस अपनी दोस्ती निभाने में सक्षम नहीं रह जाता है.
highlights
- भारत को नहीं मिल रही ट्रॉयका में जगह
- रूसी दूत ने कहा, 'भारत का तालिबान पर कोई प्रभाव नहीं है'
- अफगानी संघर्ष थमने के बाद ही भारत हो सकता है ट्रॉयका का हिस्सा
नई दिल्ली:
भारत और रूस के हमेशा से ही अच्छे सम्बंध रहे हैं. चाहे हम इतिहास की किसी भी घटना पर नज़र डालें, हमेशा भारत और रूस के संबंध मधुर ही रहे हैं. इसके अलावा कोरोना वैक्सीन- स्पुतनिक वी के मामले में भी रूस ने भारत की मदद ही की है. लेकिन जब बात ट्रॉयका में भारत को जगह देने की आती है, तो रूस अपनी दोस्ती निभाने में सक्षम नहीं रह जाता है. पिछले हफ्ते ताशकंद में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि मॉस्को भारत और ईरान को समूह में शामिल करने के बारे में विचार कर रहा है. उनके इस बयान से भारत की उम्मीदें मजबूत हुई थीं. लेकिन अब अफगानिस्तान के लिए राष्ट्रपति पुतिन के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने कहा कि भारत समूह में शामिल नहीं हो सकता क्योंकि उसका तालिबान पर प्रभाव नहीं है.
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अफगानिस्तानी संघर्ष थमने के बाद रूस कर सकता है, ट्रॉयका में भारत का स्वागत
रूस की एक न्यूज एजेंसी तास के अनुसार, काबुलोव ने मंगलवार को मॉस्को में कहा कि ट्रॉयका को अंतर-अफगान वार्ता के लिए बुलाया गया है ताकि राष्ट्रीय समझौता हो सके. इस वार्ता में केवल वे देश ही हिस्सा लेंगे जिनका दोनों पक्षों पर प्रभाव है. जबकि भारत का तालिबान पर कोई प्रभाव नहीं है. काबुलोव ने कहा कि अफगानिस्तान में संघर्ष के थमने के बाद रूस वहां भारत की सक्रिय भूमिका का स्वागत करेगा.
पुतिन के राजदुत काबुलोव की टिप्पणी पर राजनयिकों (Diplomats) का कहना है कि काबुलोव का मतलब था कि अफगान शांति वार्ता की प्रक्रिया में अभी कोई बदलाव नहीं किया गया है. इस वार्ता में भारत को शामिल करने को लेकर मॉस्को ने अभी कोई फैसला नहीं किया है.
दरअसल, अफगानिस्तान में शांति वार्ता के लिए रूस ने एक सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें अमेरिका, पाकिस्तान और चीन को बुलाया गया था. लेकिन भारत इसमें आमंत्रित नहीं था. इस कॉन्फ्रेंस में तालिबान के प्रतिनिधि भी शामिल थे. यह पूरी बातचीत ट्रॉयका के जरिए हुई. रूस अफगान शांति प्रक्रिया को लेकर होने वाली वार्ता में भले ही भारत को शामिल करने को लेकर मन न बना पाया हो. लेकिन अमेरिका की इच्छा है कि इस बातचीत की प्रक्रिया में भारत को भी शामिल किया जाना चाहिए. वैसे तो रूस ने हमेशा भारत की बात का मान रखा है, लेकिन शायद इस बार वो भारत की सुनने में अक्षमता दिखा रहा है.
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