तालिबान के सामने वैद्यता का संकट, शांति बैठक पर भी उठे सवाल 

अफगानिस्तान के दर्जन भर से ज्यादा प्रान्तों पर कब्जे के साथ काबुल की तरफ बढ़ते तालिबान के सामने अब सबसे बड़ा सवाल उसकी सत्ता की वैधता और मान्यता को लेकर खड़ा हो गया है.

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Kuldeep Singh
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अफगानिस्तान मामले में कई देशों शांति बैठक पर भी सवाल उठे हैं ( Photo Credit : न्यूज नेशन)

अफगानिस्तान के दर्जन भर से ज्यादा प्रान्तों पर कब्जे के साथ काबुल की तरफ बढ़ते तालिबान के सामने अब सबसे बड़ा सवाल उसकी सत्ता की वैधता और मान्यता को लेकर खड़ा हो गया है. यह सवाल दोहा की उस बैठक में खड़ा हुआ जहां अफगानिस्तान के शांति वार्ता के लिये दुनिया के महत्वपूर्ण देश शामिल हुये थे. सैन्य ताकत के बल पर अफगानिस्तान के अधिकांश भू भाग पर कब्जा करता तालिबान सरेआम मानवाधिकार की धज्जियां उड़ा रहा है, साथ ही वह दोहा पैक्ट का भी उल्लंघन कर रहा है जिसमे पावर शेयरिंग के साथ एक शांति व्यवस्था वाली सरकार के गठन का निर्णय हुआ था. इन्ही निर्णयों के आधार पर अमेरिका ने अपनी सेना वापस बुलाने और अगस्त अंत तक अफगानिस्तान को खाली करने पर मुहर लगायी थी. 

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एक बार फिर दोहा में जब अफगानिस्तान के हालात को लेकर यूएन सहित अमेरिका, चीन, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान, तजाकिस्तान, नार्वे, जर्मनी, कतर, तुर्की और तुर्कमेनिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुये तो तालिबान की मौजूदा रणनीति, सैन्य हमलों और अत्याचार पर गंभीर सवाल खड़े हुये. इस बैठक में भारत की तरफ से कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल और विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (PAI) जे पी  सिंह शामिल हुए. 

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दोहा बैठक में शिरकत करने वाले सभी देशों ने इस प्रस्ताव पर सहमति जतायी की अफगान सरकार और तालिबान शान्ति वार्त्ता की दिशा में आगे बढे़ राजनैतिक समाधान के साथ युद्धविराम की स्थिति कायम करें. बैठक में सम्मिलित देशों ने इस बात पर भी जोर दिया कि तत्काल प्रभाव से मानवाधिकार उल्लंघन और परस्पर  सैन्य हमलों को रोका जाना चाहिये.

गौरतलब है कि तालिबान का कहर अफगानिस्तान में लगातार बढ़ता जा रहा है. तालिबान ने अफगानिस्तान के दक्षिणी शहर कंधार पर कब्जा कर लिया है. ये अफगानिस्तान की 34 में से 12वीं प्रांतीय राजधानी है. यहां तालिबान ने एक सप्ताह से लगातार हमला किया और अब अपने कब्जे में ले लिया है. कंधार अफगानिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. तालिबान ने हेरात पर भी अपना कब्जा जमाया हुआ है. हालांकि काबुल आतंकवादी संगठन की पहुंच से अभी दूर है. 

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