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अफगान दूतावासों पर संकट के बादल...काबुल में नए शासन के बाद आया संकट

अफगानिस्तान के कुछ दूतावास स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं और उनके राजस्व की प्रकृति आज भी अज्ञात बनी हुई है..15 अगस्त को अफगानिस्तान गणराज्य के पतन के एक महीने बीत जाने के बाद, अफगान दूतावासों के भाग्य स्पष्ट नहीं हो पाया है.

Updated on: 19 Sep 2021, 08:41 PM

highlights

  • राजदूतों से संपर्क में नहीं है नई तालिबानी सरकार
  •  नए शासन के बाद आने लगी परेशानी
  •  अफगान दूतावासों के भाग्य स्पष्ट नहीं हैं

New delhi:

अफगानिस्तान के कुछ दूतावास स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं और उनके राजस्व की प्रकृति आज भी अज्ञात बनी हुई है..15 अगस्त को अफगानिस्तान गणराज्य के पतन के एक महीने बीत जाने के बाद, अफगान दूतावासों के भाग्य स्पष्ट नहीं हो पाया है. जिसके चलते अफगान दूतावासों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं..स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दूतावासों ने तालिबान की इस्लामिक अमीरात सरकार से भी संपर्क तोड़ दिया है..पझवोक अफगान न्यूज के मुताबिक एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तालिबान के अधिग्रहण के बाद मंत्रालय के 80 प्रतिशत कर्मचारी अफगानिस्तान छोड़ चुके थे..

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उन्होने बताया कि वर्तमान में विभागों में भी अधिकारी कम हैं..जिसके चलते दूसरे देशों के दूतावासों से संबंध बनाए रखने में परेशानी आ रही है.. खबरों के मुताबिक अफगानिस्तान के अधिकांश दूतावासों ने काबुल प्रशासन और मेजबान देशों के साथ संपर्क काट दिया है.. खास बात ये है कि कुछ दूतावासों का नेतृत्व अभी भी पूर्व मंत्री हनीफ अतमार और तत्कालीन उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह कर रहे हैं. अधिकारी ने कहा कि दूतावासों का 80 फीसदी खर्च पासपोर्ट और अन्य सुविधाओं को जारी करने जैसी सेवाओं से एकत्र किए गए अपने स्वयं के राजस्व से पूरा किया जाता है. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि फ्रांस और जर्मनी में अफगानिस्तान के दूतावासों के कार्यकर्ताओं ने मेजबान देशों में शरण मांगी थी, लेकिन उस पर भी अभी कोई बात-चीत नहीं हो पाई है..

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एमओएफए के पूर्व अधिकारी ने दावा किया कि कार्यवाहक विदेश मंत्री, अमीर खान मुत्ताकी ने विदेशों में अफगान दूतों के साथ ऑनलाइन बैठकें आयोजित करने की कई बार कोशिश की. लेकिन सरकार से अनुमति न मिलने के कारण आज तक बैठक नहीं हो सकी. कथित तौर पर मंत्री ने बुधवार को उनके साथ एक आभासी बैठक आयोजित करने की योजना बनाई, लेकिन इसे रद्द कर दिया गया क्योंकि अधिकांश राजदूत अनुपस्थित थे.. पजवोक अफगान न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस और जर्मनी में अफगानिस्तान के दूतावासों के कार्यकर्ताओं ने मेजबान देशों में शरण मांगी थी.