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चीन को याद आया पंचशील, जाने क्या है पंचशील का सिद्धांत ?

डोकलाम मुद्दे पर मुंह की खाने के बाद चीन पंचशील के तहत काम करने को तैयार हो गया है, जिसका भारत लंबे समय से समर्थक रहा है। जाने क्या है पंचशील समझौता?

Updated on: 05 Sep 2017, 12:27 PM

highlights

  • डोकलाम मुद्दे पर मुंह की खाने के बाद चीन पंचशील के तहत काम करने को तैयार हो गया है, जिसका भारत लंबे समय से समर्थक रहा है
  • पंचशील समझौता भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात करता है लेकिन अतीत में चीन ने हर बार इस समझौते का उल्लंघन किया है

नई दिल्ली:

1962 की लड़ाई के बाद पहली बार डोकलाम मुद्दे को लेकर भारत, चीन के साथ सैन्य गतिरोध को लेकर करीब 70 दिनों तक अड़ा रहा।

चीनी मीडिया की युद्ध की धमकी को नजरअंदाज करते हुए भारत ने साफ कर दिया कि डोकलाम मुद्दे का समाधान केवल बातचीत से होगा और इसके लिए चीन को अपनी सेना पीछे हटानी होगी। आखिरकार दोनों देशों ने आपसी सहमति से सेना को पीछे हटाने का फैसला लिया।

डोकलाम विवाद के सुलझ जाने के बाद पहली बार बीजिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई, जिसमें चीन ने पंचशील के सिद्धांतों के आधार पर भारत के साथ काम करने की सहमति जताई।

डोकलाम मुद्दे पर मुंह की खाने के बाद चीन पंचशील के तहत काम करने को तैयार हो गया है, जिसका भारत लंबे समय से समर्थक रहा है।

क्या है पंचशील समझौता?

पंचशील समझौता भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात करता है लेकिन अतीत में चीन ने हर बार इस समझौते का उल्लंघन किया है।

भारत और चीन के बीच यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय 1954 में अस्तित्व में आया। जिसमें पांच सिद्धांतों का उल्लेख किया गया था।

1. दोनों देश एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेंगे।

2. दोनों देश आक्रामक रुख से परहेज करेंगे।

3. दोनों देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे।

4. आपसी फायदे के लिए समानता और सहयोग पर बल।

5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन-भारत समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के कुछ दिनों बाद कोलंबो में हुए एशियर प्राइम मिनिस्टर कॉन्फ्रेंस में इन सिद्धांतों का जिक्र किया था।

नेहरू ने कहा था, 'अगर इन सिद्धांतों को माना गया तो कभी कोई संघर्ष या युद्ध नहीं होगा।' इन सिद्धांतों को अप्रैल 1955 में बांडुंग सम्मेलन में जारी बयान में भी जगह दी गई। इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर बाद में गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी।

हालांकि चीन ने 2017 में जिस पंचशील सिद्धांतों के आधार पर भारत के साथ काम करने की इच्छा जताई है, वह 1962 में इसे तोड़ चुका है। 1962 के बाद भी वह कई बार भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दे रहा है।