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ड्रैगन भारत को घेर हिंद प्रशांत क्षेत्र में दबदबा बढ़ाने कर रहा म्यांमार का इस्तेमाल

म्यांमार भी श्रीलंका की तरह आर्थिक बदहाली की ओर बढ़ चला है, जिससे बचने के लिए वह चीन के कर्ज के मकड़जाल में हर गुजरते दिन के साथ और फंसता जा रहा है. चीन भी इस मौके फायदा उठा हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत को घेरने के लिए उसकी मदद कर रहा है.

Updated on: 25 Jul 2022, 12:48 PM

highlights

  • हिंद महासागर में दबदबा बढ़ाने म्यांमार का इस्तेमाल कर रहा चीन
  • बीएआरआई के जरिये म्यांमार में कर रहा ढांचागत सुविधाओं का विकास
  • मकसद यही है कि भारत को घेर अमेरिका तक निशाना साधा जाए

नई दिल्ली:

म्यांमार (Myanmar) में सैन्य जुंटा शासन ने सोमवार सुबह घोषणा की है कि उसने दो और लोकतंत्र समर्थकों को सजा-ए-मौत दे दी है. इनके नाम 53 वर्षीय को जिमी और 41 वर्षीय को फो जे थॉ है.  इनके अलावा दो अन्य लोकतंत्र समर्थकों को बीते सप्ताह सजा-ए-मौत दी गई थी. थॉ अपदस्थ नेता आंग सान सू की के निकट सहयोगी थे. उनकी सजा-ए-मौत के खिलाफ अपील को जून में खारिज कर दिया गया था. इन सभी 4 लोकतंत्र समर्थकों को सैन्य अदालत ने जनवरी में सैन्य शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की साजिश रचने के आरोप में सजा-ए-मौत दी थी. रिपोर्ट के मुताबिक सजा-ए-मौत से पहले सभी लोकतंत्र समर्थकों को अपने-अपने परिवार से ऑनलाइन मुलाकात करने की अनुमति दी गई थी. म्यांमार सैन्य शासन द्वारा लोकतंत्र समर्थकों को सजा-ए-मौत से पश्चिमी देश उस पर और प्रतिबंध (Sanctions) लगा सकते हैं. ऐसे में नैप्यीदा की चीन (China) पर निर्भरता और बढ़ेगी, जिसका फायदा चीन हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए पूरी तरह से उठाएगा. बीते साल लोकतांत्रिक सरकार के तख्तापलट के बाद से म्यांमार अव्यवस्था से जूझ रहा है. सैन्य जुंता पर आर्थिक बदहाली के बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के हनन के आरोप लग रहे हैं. 

म्यांमार के जरिये भारत को घेर रहा ड्रैगन
आर्थिक बदहाली का आलम यह है कि म्यांमार की मुद्रा क्यात डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रही है. इस वक्त एक डॉलर लगभग 2400 क्यात के आसपास है, जबकि कुछ दिन पहले एक डॉलर लगभग 2000 क्यात के आसपास था. यह तब है जब म्यांमार के केंद्रीय बैंक ने विदेशी निवेश वाली कंपनियों को कड़े निर्देश जारी किए हैं कि विदेशी मुद्रा में जहां तक संभव हो भुगतान को विलंबित रखा जाए. साथ ही 35 फीसदी से अधिक विदेशी निवेश वाली कंपनियां अपने विदेशी मुद्रा को स्थानीय मुद्रा क्यात में एक्सचेंज करें. गौरतलब है कि 2021 में तख्तापलट से पहले एक डॉलर 1340 क्यात के आसपास था. कह सकते हैं कि म्यांमार भी श्रीलंका की तरह आर्थिक बदहाली की ओर बढ़ चला है, जिससे बचने के लिए वह चीन के कर्ज के मकड़जाल में हर गुजरते दिन के साथ और फंसता जा रहा है. चीन भी इस मौके फायदा उठा हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत को घेरने के लिए उसकी मदद कर रहा है और वहां ऐसी परियोजनाएं स्थापित कर रहा है, जो भारत की सुरक्षा समेत हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके वर्चस्व को बढ़ाएं.

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हिंद महासागर में वर्चस्व बढ़ाने की रणनीति
म्यांमार के प्रति चीन के झुकाव की एक बड़ी वजह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव भी है. म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार इस समझौते में शामिल होने को राजी तो हो गई थी, लेकिन कई प्रोजक्ट्स को मंजूरी देने में हिचक रही थी. चीन का इरादा युन्नान प्रांत से म्यांमार के हिंद महासागर तट तक एक ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन कॉरिडोर बनाने का है. यह प्रोजक्ट चीन म्यांमार आर्थिक गलियारे (सीएमईसी) का हिस्सा है. इस प्रोजक्ट से चीन के आर्थिक और रणनीतिक हित सीधे तौर पर जुड़े हैं. यही कारण है कि अपने प्रोजक्ट को पूरा करवाने के लिए चीन म्यांमार की सैन्य सरकार का समर्थन करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. पाकिस्तान में ग्वादर और श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह बनाकर हिंद महासागर में भारत को घेरने की कोशिश करने के बाद अब ड्रैगन बंगाल की खाड़ी में भी ऐसी ही हरकत की तैयारी में है. म्यांमार के बंदरगाहों पर चीन अपनी पहुंच बना रहा है, जिससे वह हिंद महासागर में भारत को घेर सकता है. म्यांमार के यंगून पोर्ट से चीन के युन्नान प्रांत के लिए कार्गो रन सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है.

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बंगाल की खाड़ी तक बढ़ जाएगा दबदबा
हिंद महासागर के इस बंदरगाह पर अपना वर्चस्व स्थापित कर चीन बंगाल की खाड़ी में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर के तहत चीन और भी ऐसी कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जिनसे लोकतांत्रिक सरकार ने इंकार कर रखा था. अब इस कॉरिडोर के चलते चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी बंगाल की खाड़ी में भारत की गतिविधियों पर नजर रख सकेगी. इसके अलावा चीन को अपने ऑइल शिपमेंट्स भी स्ट्रेट्स ऑफ मलक्का जाए बिना मिल सकेंगे. दरअसल हिंद महासागर में चीन लंबे समय से अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है. वहीं अमेरिका और भारत भी उसे रोकने के लिए साझा प्रयास करते रहे हैं. दोनों ही देशों के हित चीन की इस इलाके में बढ़ती गतिविधियों से सीधे-सीधे प्रभावित होते हैं. चीन ने बुनियादी ढांचे और अन्य क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा करने के लिए 2015 में लंकांग-मेकांग ढांचे के गठन किया. इसका नाम दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे लंबी नदी के नाम पर रखा गया है, जिसके चीनी हिस्से को लंकांग कहा जाता है. भारत भी ड्रैगन की इस चाल को समझ बिम्सटेक के जरिए चीन को घेरने की कोशिश कर रहा है. साथ ही अपने पड़ोसी देशों को आर्थिक और बुनियादी ढांचागत मदद पहुंचा उन्हें चीन के कर्ज के मकड़जाल में फंसने से भी रोकने की कोशिश कर रहा है.