आरोप : आईएमएफ प्रमुख की हेराफेरी, चीन के पक्ष में वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट में बढ़ा दी रैंकिंग
इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड चीफ (आईएमएफ) क्रिस्टलीना जॉर्जीवा एक विवाद में फंस गई हैं. उन पर वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया है.
highlights
- ‘डूइंग बिजनेस रिपोर्ट' में बदलाव करने का आरोप
- आईएमएफ चीफ उस समय वर्ल्ड बैंक की सीईओ थीं
- रैंकिंग को लेकर चीन ने की थी शिकायत
नई दिल्ली:
इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड चीफ (आईएमएफ) क्रिस्टलीना जॉर्जीवा एक विवाद में फंस गई हैं. उन पर वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया है. जॉर्जीवा पर चीन को खुश करने के लिए वर्ल्ड बैंक की ‘डूइंग बिजनेस रिपोर्ट में बदलाव करने का आरोप लगा है. जब वह वर्ल्ड बैंक में थी. कहा जा रहा है कि उन्होंने कर्मचारियों पर रिपोर्ट में बदलाव करने के लिए दबाव डाला था. हालांकि बैंक की जांच रिपोर्ट में जॉर्जिवा ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों का सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है कि इससे उनकी छवि को नुकसान पहुंच सकता है. इस बीच विश्व बैंक ने वर्ष 2018 से 2020 तक के एडिशन की जांच में अनियमितता पाए जाने के बाद इस ‘डूइंग बिजनेस रिपोर्ट’ को तुरंत बंद करने का फैसला किया है. जॉर्जीवा उस समय वर्ल्ड बैंक की सीईओ थीं.
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बैंक की एथिक्स कमेटी के अनुरोध पर लॉ फर्म विल्मरहेल द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, विश्व बैंक में चीन के प्रभाव और जॉर्जीवा के फैसले के बारे में कुछ चिंताएं उठना स्वाभाविक है. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग, जो आईएमएफ और विश्व बैंक में प्रमुख अमेरिकी शेयरधारिता का प्रबंधन करता है, ने कहा कि विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि यह गंभीर विषय है. विल्मरहेल रिपोर्ट ने चीन के स्कोर को बढ़ाने के लिए रिपोर्ट की कार्यप्रणाली को बदलने के लिए वर्ल्ड बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष जिम किम के कार्यालय में वरिष्ठ कर्मचारियों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दबाव का हवाला दिया और कहा कि यह संभवतः वर्तमान में चीफ आईएमएफ क्रिस्टलीना जॉर्जीवा के निर्देश पर हुआ था. इसने कहा कि जॉर्जीवा और एक प्रमुख सलाहकार शिमोन जोंकोव ने कर्मचारियों पर चीन के डेटा बिंदुओं में विशिष्ट परिवर्तन करने और अपनी रैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए दबाव डाला था. यह आरोप लगने के बाद जॉर्जीवा ने कहा कि उन्होंने आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड को जानकारी दी थी.
संयुक्त राष्ट्र को लेकर पीएम मोदी ने उठाए थे सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस तरह के संगठन में बदलाव और इसकी प्रासंगिकता को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं. पिछले साल जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े संस्थान पर कुछ सवाल उठाए थे. पिछले साल दिसंबर माह में कोरोना महामारी के दौरान मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा था कि आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है? पीएम नरेंद्र मोदी ने बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर इस संगठन के स्वरूप और प्रासंगिता पर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने कहा था कि अगर हम बीते 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें, तो कई उपलब्धियां दिखाई देती हैं. संयुक्त राष्ट्र को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा था कि इतने बड़े संस्थान की जो एक प्रभावशाली जिम्मेदारी होनी चाहिए, वह कहां है?
चीन पर ट्रंप ने भी उठाए थे सवाल
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस को लेकर चीन और डब्ल्यूएचओ पर हमला बोल चुके हैं. उन्होंने कहा था विश्व स्वास्थ्य संगठन वास्तव में चीन की कठपुतली है. ट्रंप ने कोरोना को छिपाने और दुनिया में इसे फैलाने के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया था. वहीं कोरोना वायरस पर डब्ल्यूएचओ पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलीभगत के आरोप भी लगे थे. हालांकि डब्ल्यूएचओ ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था.
ये है पूरा मामला
विश्व बैंक की फ्लैगशिप रिपोर्ट में व्यापार नियमों और आर्थिक सुधारों के आधार पर अलग-अलग देशों को रैंकिंग दी जाती है. इस रिपोर्ट को दिखाकर सरकारें इनवेस्टर को अपने यहां निवेश करने के लिए कहती हैं. लॉ फर्म विल्मरहेल की जांच रिपोर्ट में पाया गया कि बीजिंग ने 2017 में अपनी 78वीं रैंकिंग को लेकर शिकायत की थी और अगले साल उसे इस रैंक में और नीचे दिखाया जाने वाला था.
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