जानें क्या है इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद (Mossad) जिस पर लगा ईरानी वैज्ञानिक की हत्या का आरोप
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद पर ईरान के चीफ न्यूक्लियर साइंटिस्ट की हत्या का आरोप लगा है। क्या है मोसाद और यह क्या काम करती है, यहां जानते हैं.
यरूशलम:
ईरान के परमाणु कार्यक्रम के चीफ साइंटिस्ट मोहसिन फखरीजादेह की तेहरान के पास गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. इस मामले में ईरान के विदेश मंत्री ने इजरायल पर आरोप लगाया है. मोहसिन फखरीजादेह की हत्या का आरोप इजरायल की कुख्यात खुफिया एजेंसी मोसाद (Mossad) पर लग रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि ईरान के वैज्ञानिकों को पहले भी निशाना बनाया जा चुका है. तब भी उन हत्याओं का आरोप मोसाद पर लगा था. इतना ही नहीं 2018 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के दस्तावेज चोरी कर इजरायल पहुंचाने के पीछे भी मोसाद का हाथ बताया जाता है.
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मोसाद पर पहले भी लगे कई आरोप
मोसाद पिछले काफी समय से अपने खुफिया मिशन के लिए कुख्तात रह चुकी है. साल 1960 में अडोल्फ ईशमन की किडनैपिंग हो या इजरायल के ऐथलीट्स को 1972 म्यूनिक ओलिंपिक में मारे जाने पर घातक प्रतिक्रिया, मोसाद के नाम कई खतरनाक कांड शामिल हैं. यहां तक कि 2018 में मोसाद के जासूस न्यूक्लियर आर्काइव को ईरान से अजरबैजान के रास्ते इजरायल ले गए और ईरान की सिक्यॉरिटी सर्विसेज कुछ नहीं कर पाईं.
काफी असरदार है एजेंसी
मोसाद के डायरेक्टर योसी कोहेन को बेहद प्रभावशादी व्यक्ति माना जाता है. वह कितने प्रभावशादी हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इजरायल और बाहरेन, संयुक्त अरब अमीरात और सूडान से बातचीत के पीछे उनकी काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. मोसाद के डायरेक्टर कोहेन अरब देशों में अपनी समकक्षों से बातचीत के लिए गए हैं.
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CIA के बाद सबसे बड़ी
मोसाद को सीआईए के बाद सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी माना जाता है. इसके मिशन लगातार बढ़ते जा रहे हैं. मोसाद पिछले कुछ सालों से लगातार अधिक सक्रिय होती जा रही है. इसके बजट में भी लगातार इजाफा किया जा रहा है. अगस्त 2020 में एक स्टेट कंप्ट्रोलर रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि एजेंसी का बजट 1.5 अरब न्यू इजरायली शेकेल (NIS) पार कर 2.6 अरब NIS पर पहुंच गया. इसके साथ ही मोसाद बजट और जासूसों की संख्या के मामले में भी अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के बाद सबसे बड़ी हो गई.
कब हुई थी स्थापना?
मोसाद की स्थापना 13 दिसंबर, 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन-गूरियन की सलाह के बाद की गई थी. डेविड बेन-गूरियन चाहते थे कि एक केंद्रीय इकाई बनाई जाए जो मौजूदा सिक्यॉरिटी सेवाओं- सेना के इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट, आंतरिक सुरक्षा सेवा और विदेश के राजनीति विभाग के साथ समन्वय और सहयोग को बढ़ाए. मार्च 1951 में इसे पीएम ऑफिस का हिस्सा बना दिया गया और जवाबदेही प्रधानमंत्री को तय कर दी गई.
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