बीजिंग की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) योजना, जो एक समय पर दुनिया की सबसे बड़ी विकास परियोजना मानी जाती थी, अब कई गरीब देशों के लिए सिरदर्द बनती जा रही है. साल 2025 में विकासशील देशों को चीन को करीब 35 अरब डॉलर का कर्ज़ देना है.
सिडनी के लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि इसमें से 22 अरब डॉलर की रकम दुनिया के 75 सबसे गरीब देशों को देनी है. यह स्थिति इन देशों के लिए बेहद मुश्किल है क्योंकि इससे उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसी बुनियादी सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं. रिपोर्ट के राइटर राइली ड्यूक ने साफ कहा कि “अब चीन कर्ज़ देने वाला नहीं, वसूली करने वाला बन रहा है.”
क्या है BRI और कैसे बढ़ा कर्ज़?
BRI की शुरुआत 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी. इसके तहत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में सड़कों, रेल, बंदरगाहों और पावर प्रोजेक्ट्स में भारी इंवेस्ट किया गया.
2016 में चीन का कर्ज़ डिस्ट्रीब्यूशन अपने चरम पर था. करीब 50 अरब डॉलर सालाना, जो पश्चिमी देशों के कुल योगदान से भी ज़्यादा था. अब, उस समय लिया गया कर्ज़ चुकाने का वक्त आ गया है.
क्या चीन वाकई ‘कर्ज़ का जाल’ बिछा रहा है?
चीन पर आरोप लगता रहा है कि वह गरीब देशों को जानबूझकर ऐसे कर्ज़ देता है जिन्हें वे चुका न सकें, और फिर उनसे रणनीतिक संपत्तियां हथिया लेता है. श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट इसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है, जिसे कर्ज़ न चुकाने पर 99 साल के लिए चीन को सौंपना पड़ा.
हालांकि, सभी एक्सपर्ट इससे सहमत नहीं हैं. Rhodium Group की रिपोर्ट कहती है कि चीन ने 24 देशों में 38 कर्ज़ सौदों को दोबारा तय किया है. अक्सर उधार लेने वालों को राहत मिली है. Johns Hopkins University के मुताबिक, चीन ने $3.4 अरब माफ किया और $15 अरब का पुनर्गठन किया.
क्या सिर्फ चीन जिम्मेदार है?
अगर हम इस तथ्य पर गौर करें कि केवल चीन ही जिम्मेदार है, तो इससे पूरी तरह सहमत होना सही नहीं होगा. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पश्चिमी देशों और निजी कंपनियों का कर्ज़ भी विकासशील देशों पर बहुत भारी है. अफ्रीकी देशों का पश्चिमी कर्ज़ चीन से तीन गुना ज्यादा है. ब्याज दरें भी चीन की तुलना में दोगुनी हैं।
गरीब देश आज कर्ज़ के बोझ से दबे हैं. कुछ कर्ज़ चीन के हैं, कुछ पश्चिमी दुनिया के. लेकिन जिम्मेदारी किसी एक देश की नहीं है ज़रूरत है एक पारदर्शी और न्यायपूर्ण वैश्विक ऋण प्रणाली की, जहां विकासशील देश बिना किसी दबाव के अपने लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास में निवेश कर सकें.
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