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कुनार नदी Photograph: (WIKI)
अफगानिस्तान ने इस हफ्ते पाकिस्तान को पानी के संकट में घेरने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. तालिबान सरकार के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा के आदेश पर कुनार नदी पर जल्द से जल्द बांध निर्माण की तैयारी शुरू कर दी गई है.
तालिबान के कार्यवाहक जल संसाधन मंत्री मुल्ला अब्दुल लतीफ़ मंसूर ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अफगान अपनी जल संपदा का इस्तेमाल करने का पूरा हक रखते हैं और इन परियोजनाओं को विदेशी कंपनियों की जगह देश की अपनी एजेंसियां पूरा करेंगी.
विवाद के बीच अफगानिस्तान का बड़ा कदम
तालिबान का यह कदम ऐसे समय पर सामने आया है, जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच दूरंड लाइन पर झड़पें बढ़ रही हैं. इस महीने पाकिस्तान ने काबुल पर आरोप लगाया था कि वह टीटीपी जैसे आतंकी संगठनों को शह दे रहा है. हालात इतने तनावपूर्ण हो चुके हैं कि अब पानी को कूटनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
आखिर क्यों अहम ये नदी?
कुनार नदी की यात्रा दिलचस्प है. इसकी शुरुआत पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के चितरल इलाके से होती है, फिर यह दक्षिण की ओर अफगानिस्तान में बहती हुई नंगरहार पहुंचती है. यहां से यह नदी काबुल नदी में मिलती है और दोबारा पाकिस्तान में प्रवेश कर अट्टॉक के पास सिंधु नदी का हिस्सा बन जाती है. यही वजह है कि यह नदी पाकिस्तान के लिए सिंचाई, पीने के पानी और बिजली उत्पादन की मुख्य लाइफलाइन है.
बांध बन गया तो क्या होगा?
अगर अफगानिस्तान कुनार या काबुल नदी पर बड़े बांध तैयार कर लेता है, तो पाकिस्तान की पहले से सूखी पड़ी जमीन पर और संकट बढ़ जाएगा. खास बात यह भी है कि भारत की तरह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरह की जल संधि मौजूद नहीं है, इसलिए काबुल पर दबाव बनाने का कोई कानूनी तरीका फिलहाल नहीं है. इससे दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव के और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है.
सत्ता में आने के बाद से ही वाटर कंट्रोलिंग
तालिबान सत्ता में आने के बाद से लगातार जल स्रोतों पर नियंत्रण मजबूत करने पर काम कर रहा है. उत्तर अफगानिस्तान में बन रही 285 किलोमीटर लंबी कोश-तेपा नहर इसका बड़ा उदाहरण है, जिसके कारण अमू दरिया का पानी कम हो सकता है, और इसका असर मध्य एशियाई देशों तक पड़ेगा.
भारत ने भी की थी सराहना
दिलचस्प है कि पिछले हफ्ते तालिबान के विदेश मंत्री भारत दौरे पर थे और भारत द्वारा हेरात में बांध परियोजनाओं में मदद की सराहना की. दोनों देशों ने जल प्रबंधन और हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर सहयोग बढ़ाने की बात भी कही है.
पानी अब एशिया की नई भू-राजनीतिक जंग का मैदान बन चुका है और आने वाले समय में इसके प्रभाव और भी गहरे दिखाई देंगे.
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