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Udupi Krishna Temple
Viral Video Of Udupi Krishna Temple: आपने भारत में कई ऐसी रहस्यमयी मंदिर के बारे में सुना होगा जो अपनी अनोखी परंपरा के लिए मशहूर होते हैं. कही भगवान को बकरी की बली देने की परंपरा होती है तो कही पर मांस चढ़ाने की परंपरा होती है. ऐसा ही एक भारत के पश्चिमी तट पर स्थित उडुपी का श्री कृष्ण मंदिर है जो न सिर्फ अपनी भव्यता और आध्यात्मिक महत्व के लिए जानी जाती है बल्कि अपनी अनोखी धार्मिक परंपराओं के कारण भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है. उडुपी क्षेत्र को मंदिरों की भूमि और परशुराम क्षेत्र भी कहा जाता है. यहां प्राचीन चंद्रमौलीश्वर और अनंतेश्वर मंदिर भी स्थित हैं. कहा जाता है कि यह स्थान न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि अनुशासन, परंपरा और समानता का भी प्रतीक माना जाता है. चलिए आपको बताते हैं इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में.
जमीन पर बैठकर ग्रहण करते हैं प्रसाद
इस मंदिर की सबसे विशेष और चौंकाने वाली बात यह है कि यहां भक्त मंदिर के फर्श पर बैठकर भोजन और प्रसाद ग्रहण करते हैं. यह कोई मजबूरी या नियम नहीं, बल्कि भक्तों की स्वयं की इच्छा होती है. मान्यता है कि जिन श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, वे प्रसाद को फर्श पर बैठकर ग्रहण करते हैं, और इसे कृतज्ञता का भाव माना जाता है. इस प्रसाद को ‘प्रसादम’ या ‘नौवैद्यम’ कहा जाता है. मंदिर का फर्श मशहूर काले कडप्पा पत्थर (Black Kadappa Stone) से बना है, जो बेहद शीतल और शुद्ध माना जाता है.
श्री कृष्ण मठ की एक और अनोखी परंपरा यह है कि मंदिर की देखभाल का दायित्व यहां मौजूद 8 मठों द्वारा चक्रीय क्रम में संभाला जाता है. पहले प्रत्येक मठ 2 महीने तक मंदिर का प्रबंधन देखता था, लेकिन बाद में संत स्वामी वदिराज ने इस नियम को संशोधित करके इसे दो वर्ष के लिए निर्धारित किया. इस व्यवस्था को ‘पर्याया प्रणाली’ कहा जाता है, जो आज भी पालन की जाती है.
मंदिर प्रशासन ने लागू किया ड्रेस कोड
हाल ही में मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए ड्रेस कोड लागू किया है. पुरुषों के लिए धोती और अंगवस्त्रम पहनना अनिवार्य किया गया है, जबकि महिलाएं साड़ी या सलवार-कमीज पहनकर ही प्रवेश कर सकती हैं. अन्य परिधान में प्रवेश नहीं दिया जाता, जिससे मंदिर की सांस्कृतिक और पारंपरिक पवित्रता को बनाए रखा जा सके.
मंदिर में प्रवेश से पहले दिखाई देती है खिड़की
मंदिर में प्रवेश से पहले एक विशाल गोपुरम के नीचे स्थित खिड़की दिखाई देती है, जिसे “कनकदास खिड़की” कहा जाता है. किंवदंती है कि महान भक्त कनकदास को एक समय दर्शन की अनुमति नहीं दी गई, तब उन्होंने बाहर खड़े होकर प्रार्थना की और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति उनकी ओर मुड़ गई. आज भी श्रद्धालु सबसे पहले इसी खिड़की से दर्शन करते हैं और फिर मंदिर में प्रवेश पाते हैं. हालांकि यह कथा धार्मिक ग्रंथों या ऐतिहासिक प्रमाणों से प्रमाणित नहीं है, लेकिन लोगों की आस्था इसे जीवित रखे हुए है.
उडुपी श्री कृष्ण मठ न सिर्फ पूजा का स्थान है, बल्कि एक ऐसी सीख भी देता है कि आस्था में समानता, विनम्रता और कृतज्ञता सबसे ऊंचा स्थान रखती हैं. यहां प्रसाद ग्रहण करने का तरीका लोगों को यह याद दिलाता है कि ईश्वर के सामने सभी समान हैं.
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