चंद्र ग्रहण के बाद बीमारी की आशंका को लेकर ज्योतिषियों ने अपनी राय दी है. उनका कहना है कि ग्रहण के समय वातावरण में बदलाव होता है और कुछ लोगों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है.
चंद्र ग्रहण के दौरान अंधेरा छा जाता है. कुछ लोग मानते हैं कि इस समय अल्ट्रावायलेट किरणें और अन्य तरह के जीवाणु, कीटाणु और बैक्टीरिया निकलते हैं जो हमारी सेहत पर बुरा असर डालते हैं. ऐसे में ग्रहण के समय खाना-पीना बंद कर देना चाहिए. खासकर रोगी लोगों को परहेज करना चाहिए और अगर खाना जरूरी हो तो उसमें तुलसी या कुशा डालकर खाना चाहिए ताकि भोजन में फंगस न लगे और वह सुरक्षित रहे.
लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्र ग्रहण के समय सिर्फ रोशनी कम होती है, जिससे वातावरण में बदलाव होता है और अस्थायी तनाव या भ्रम पैदा हो सकता है. सूरज की ऊर्जा उस समय नहीं मिलती, इसलिए मेलाटोनिन जैसे हार्मोन प्रभावित हो सकते हैं. मगर इसमें किसी तरह का जीवाणु, कीटाणु या बीमारी फैलने का प्रमाण नहीं है.
साइंस बनाम आस्था
कई लोग ग्रहण के समय बीमारी फैलने की बात करते हैं, जबकि वैज्ञानिक इसे स्वीकार नहीं करते. वैज्ञानिकों का कहना है कि तीन घंटे में कोई जीवाणु पैदा होकर फिर मर नहीं सकता. इसके लिए कोई शोध नहीं है. वहीं दूसरी तरफ कुछ ज्योतिषी कहते हैं कि चंद्रमा की स्थिति समुद्र में ज्वार-भाटा लाती है, तो हमारे शरीर में मौजूद पानी पर भी असर डाल सकती है.
धर्म और विज्ञान का मेल
हमारे पूर्वजों ने चंद्रमा को मन का कारक माना. ब्रेन में 75-80% पानी है, इसलिए चंद्रमा का प्रभाव मन पर पड़ सकता है. आज विज्ञान और धर्म को अलग कर दिया गया है, जबकि दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं. अगर इन्हें साथ समझा जाए तो कई नई बातें सामने आ सकती हैं.
चंद्र ग्रहण केवल खगोलीय घटना नहीं है, यह हमारी आस्था और मनोस्थिति से भी जुड़ा है. वैज्ञानिक प्रमाण भले न हों, पर परंपरा और अनुभव इसे गंभीरता से देखने की सलाह देते हैं. सही जानकारी और सावधानी से हम इसे अपने जीवन के लिए लाभकारी बना सकते हैं.
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