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वर्ष 2005 से पहले का बिहार बेरोजगारी की गंभीर समस्या से जूझ रहा था. उस समय राज्य में नौकरी और रोजगार के अवसर लगभग खत्म हो चुके थे. विभागों में बहाली नहीं होती थी और यदि होती भी थी तो उसमें भ्रष्टाचार और सिफारिश का बोलबाला था. कई बार नौकरी के बदले जमीन तक लिखवा ली जाती थी. मजबूरी में युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन करते थे, जहां उन्हें भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ता था.
2005 से अब तक 50 लाख युवाओं को मिला रोजगार
आपको बता दें कि 24 नवंबर 2005 को नई सरकार बनने के बाद बिहार में रोजगार सृजन के लिए ठोस नीति बनाई गई. सबसे पहले विभिन्न विभागों में खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की गई. वर्ष 2005 से 2020 के बीच 8 लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी और लाखों लोगों को रोजगार दिया गया. इसके बाद ‘सात निश्चय-2’ योजना के तहत 10 लाख सरकारी नौकरी और 10 लाख रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया.
सरकार के अनुसार, वर्ष 2020 से 2025 के बीच 10 लाख नहीं, बल्कि 40 लाख लोगों को रोजगार और 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी जा चुकी है. यानी अब तक कुल 50 लाख लोगों को रोजगार के अवसर मिल चुके हैं. अब लक्ष्य है कि वर्ष 2025 से 2030 तक 1 करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार दिया जाए.
अगले पांच साल का लक्ष्य
अगले पांच साल में 1 करोड़ नौकरी देने का लक्ष्य पूरा करने के लिए राज्य में उद्योग लगाने, निवेश बढ़ाने और कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है. हर जिले में लैंड बैंक बनाकर उद्योगों के लिए जमीन उपलब्ध कराई जा रही है. साथ ही राज्य में सड़क, रेल और बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं को मजबूत किया गया है, ताकि निवेशकों को अनुकूल माहौल मिले.
संविदा कर्मियों को भी राहत दी गई है- अब उन्हें 60 साल तक सेवा, मानदेय में बढ़ोतरी और अनुभव के आधार पर प्राथमिकता दी जा रही है.
खेल क्षेत्र में भी बड़ी पहल की गई है. ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ योजना के तहत 454 खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी दी गई है. बिहार खेल छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत 725 खिलाड़ियों को सालाना 3 से 20 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जा रही है. अब तक 3,000 से अधिक पंचायतों में खेल मैदान बनाए जा चुके हैं ताकि ग्रामीण युवाओं को भी मंच मिल सके. सरकार का कहना है कि बिहार अब बेरोजगारी से निकलकर रोजगार और आत्मनिर्भरता के नए युग में प्रवेश कर चुका है.
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