झारखंड के पलामू जिले के हैदर नगर में हर साल भूतों का मेला लगता है. यह मेला देवी मां के प्राचीन मंदिर के आसपास आयोजित होता है, जहां लोग झाड़-फूंक और भूत भगाने के लिए आते हैं.
झारखंड के पलामू जिले के हैदर नगर में हर साल एक अनोखा मेला लगता है, जिसे स्थानीय लोग ‘भूतों का मेला’ कहते हैं. यह मेला देवी मां के प्राचीन मंदिर के आसपास आयोजित होता है. लोग मानते हैं कि जिनके शरीर पर भूत या बुरी आत्मा का प्रभाव होता है, उन्हें यहां लाकर भगाया जा सकता है.
भूतों को भगाने की प्रक्रिया
आपको बता दें कि मेला मुख्य रूप से झाड़-फूंक और भूत भगाने के लिए जाना जाता है. स्थानीय भगत दावा करते हैं कि वे शरीर से भूत, डाकिन, प्रेत और अन्य बुरी आत्माओं को निकाल सकते हैं. इसके लिए विशेष मंत्र, चावल, चाकू और पूजा विधियों का इस्तेमाल किया जाता है. किसी व्यक्ति या महिला के शरीर में भूत का साया होने पर उन्हें मंदिर या मजार में लाया जाता है और झाड़-फूंक के जरिए ठीक किया जाता है.
मेला क्यों खास है?
हैदर नगर का यह मेला केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि सदियों पुरानी परंपरा है. कहा जाता है कि यह प्रथा 100 साल से अधिक समय से चली आ रही है. मेला अधिकतर गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को आकर्षित करता है. यहां आने वाले लोग अपनी परेशानियों और बीमारियों के समाधान की उम्मीद लेकर आते हैं.
लोगों के अनुभव
स्थानीय लोग और मेला में आए कुछ व्यक्ति मानते हैं कि उनके शरीर से भूत निकाल दिए गए. उदाहरण के लिए, सोनभद्र से आई कुछ लड़कियों का कहना था कि उन्हें लगातार कमजोरी, दर्द और असामान्य अनुभव हो रहे थे, जिन्हें भगत की मदद से ठीक किया गया.
हालांकि, विशेषज्ञ और पत्रकार इसे अंधविश्वास मानते हैं. उनका कहना है कि वास्तविकता में भूत भगाने का दावा विज्ञान या मेडिकल तरीके से साबित नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है.
आस्था और अंधविश्वास का मिश्रण
भूतों के मेले में आस्था और अंधविश्वास दोनों का मिश्रण देखा जा सकता है. स्थानीय भगत और मजार वाले लोग दावा करते हैं कि वे भूतों को दूर कर सकते हैं, जबकि बाहरी नजरिए से यह केवल सामाजिक और मानसिक राहत का माध्यम है.
पलामू के हैदर नगर में भूतों का मेला आज भी सैकड़ों सालों से आयोजित हो रहा है. यह मेला लोगों की आस्था, उम्मीद और विश्वास का प्रतीक है. हालांकि विज्ञान और आधुनिकता के दौर में इसे अंधविश्वास के रूप में देखा जा सकता है, फिर भी यह स्थानीय संस्कृति और परंपरा का अहम हिस्सा बना हुआ है.
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