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रामगोपाल चाणक्य तो नहीं पर एक ऐसे प्रोफेसर जिनकी मुख्यमंत्री अखिलेश हर बात मानते हैं

इस पटकथा में भले ही अखिलेश सामने दिख रहे हों, लेकिन परदे के पीछे वो हैं जिन्हें समाजवादी परिवार में

Updated on: 23 Oct 2016, 05:05 PM

highlights

  • अखिलेश का बचपन रामगोपाल के यहाँ गुज़रा
  • रामगोपाल ने ही कहा मुख्यमंत्री बनें अखिलेश
  • आज भी हैं अखिलेश का आख़िरी पड़ाव

 

 

 

 

 

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव केंद्रीय भूमिका में हैं। उनके बाग़ी तेवरों ने नेताजी सहित समाजवादी पार्टी के पुराने नेताओं की भी नींद उड़ा रखी है। सियासी परिवारों में उत्तराधिकार की लड़ाई इतिहास में नई नहीं है लेकिन इतिहास ही हमें बताता है कि ऐसे संघर्षों के बीज परिवार के भीतर ही अंकुरित होते हैं।

इस पटकथा में भले ही अखिलेश सामने दिख रहे हों, लेकिन परदे के पीछे वो हैं जिन्हें समाजवादी परिवार में "प्रोफ़ेसर" कहा जाता है। रामगोपाल यादव मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं और समाजवादी पार्टी के अंदर उनकी भूमिका चाणक्य जैसी है हालिया उठापटक में वो अखिलेश के पीछे मजबूती से खड़े हैं। आइये जानते हैं कैसा रहा है रामगोपाल का सफर:

रामगोपाल का जन्म 29 जून 1946 को इटावा ज़िले के सैफई गाँव में हुआ। बचपन से ही उनकी पढ़ने-लिखने में रूचि थी। आगे चलकर उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से भौतिकी और राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया।

4 मई 1962 को इनकी शादी फूलन देवी से हुई। रामगोपाल के एक बेटी और दो बेटियां हैं। शुरुआत अध्यापक के रूप में की और आगे चल कर शिक्षाविद के रूप में स्थापित हुए।

हांलांकि राजनीति में बहुत देर से कदम रखा लेकिन मुलायम के राजनीति सफर में दिल-दिमाग से जुटे रहे। 1988 में पहली बार ब्लॉक प्रमुख चुने गए। 1989 से 1992 तक इटावा ज़िला परिषद् के अध्यक्ष रहे।

4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना हुई और इसके तुरंत बाद ही वो राज्यसभा भेज दिए गए। तब से अब तक दिल्ली की संसदीय राजनीति में समाजवादी पार्टी के झंडाबरदार हैं।

परिवार की रीत के अनुसार ही अपने बेटे को पिछले चुनाव में राजनीति में उतार दिया। अक्षय यादव फ़िरोज़ाबाद से लोकसभा सांसद हैं। वर्तमान में वे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता व महासचिव हैं।

2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो अखिलेश को इसकी कमान देने का सुझाव रामगोपाल का ही था। शिवपाल तब भी इस बात को लेकर खुश नहीं थे लेकिन रामगोपाल अड़े रहे और अंततः नेताजी को उनकी बात माननी पडी।

काबिलेगौर है कि हालिया उठापटक के उफान पर आ जाने के बाद आखिरकार उन्होंने अपनी रणनीति साफ़ कर दी और चिट्ठी के आखिरी शब्द कुछ यूँ थे: "जहाँ अखिलेश, वहां विजय!"