किरायदारों की बल्ले-बल्ले, मुआवजा नहीं तो बिल्डर को सीधा जेल, MahaRERA का नया SOP जारी

Real Estate: अगर आप महाराष्ट्र से हैं और एक घर खरीददार हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद जरूरी है. यहां महाराष्ट्र रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (महारेरा) ने एक बड़ा कदम उठाया है.

Real Estate: अगर आप महाराष्ट्र से हैं और एक घर खरीददार हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद जरूरी है. यहां महाराष्ट्र रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (महारेरा) ने एक बड़ा कदम उठाया है.

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Yashodhan.Sharma
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MahaRERA new SOP

MahaRERA new SOP Photograph: (NN)

Real Estate: महाराष्ट्र रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (महारेरा) ने 22 नवंबर को एक बड़ा कदम उठाते हुए एक नया स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जारी किया है. इस SOP का उद्देश्य परेशान घर खरीदारों को समयबद्ध तरीके से मुआवजा दिलाना और बिल्डरों की जवाबदेही तय करना है. महारेरा ने साफ किया है कि अब उसके आदेश के 60 दिनों के भीतर घर खरीदारों को मुआवजा मिल जाना चाहिए.

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कैसे होगा एक्शन

महारेरा के अनुसार, अगर कोई बिल्डर इतनी अवधि में भुगतान नहीं करता है, तो पहली बार ऐसे मामलों को संबंधित क्षेत्र की प्रिंसिपल सिविल कोर्ट में भेजा जाएगा. यहां सुनवाई के बाद दोषी पाए जाने पर बिल्डर को तीन महीने तक की जेल भी हो सकती है. यह प्रावधान मुआवजा वसूली को तेज करेगा और खरीदारों को समय पर राहत मिल सकेगी.

मुआवजा न मिलने पर खरीरददार को करना होगा ये काम

अक्सर खरीदार बिल्डरों की अनदेखी, समय पर कब्जा न देने, घटिया निर्माण, पार्किंग की समस्या या वादे किए गए सुविधाओं की कमी के चलते महारेरा का दरवाजा खटखटाते हैं. तय अधिकारी मामले की सुनवाई कर मुआवजा तय करते हैं. लेकिन अब मुआवजा न मिलने पर खरीदार को 60 दिन पूरे होते ही ‘नॉन-कम्प्लायंस एप्लिकेशन’ देनी होगी.

चार हफ्ते के भीतर होगी सुनवाई

शिकायत मिलते ही महारेरा चार हफ्ते के भीतर सुनवाई करेगा. अगर लगता है कि बिल्डर आदेश का पालन नहीं कर रहा है, तो उसे मानने के लिए एक उचित समय दिया जाएगा. इसके बाद भी भुगतान न होने पर बिल्डर से उसकी चल-अचल संपत्तियों, बैंक खातों और निवेश की पूरी जानकारी शपथपत्र के रूप में मांगी जाएगी.

जिला कलेक्टर को भेजा जाएगा रिकवरी वारंट

महारेरा ने यह भी स्पष्ट किया है कि मुआवजा वसूली सुनिश्चित करने के लिए संबंधित जिला कलेक्टर को ‘रिकवरी वारंट’ भेजा जाएगा. अगर बिल्डर संपत्तियों की जानकारी देने में भी टालमटोल करता है, तो मामला सीधे सिविल कोर्ट भेज दिया जाएगा, जहां कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर के तहत कार्रवाई होगी, जिसमें जेल की सजा भी शामिल है.

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि नया SOP सकारात्मक कदम है, लेकिन इसके लागू होने की प्रभावशीलता पर ही इसका असली असर निर्भर करेगा. विशेषज्ञों ने वारंट पोर्टल में रियल-टाइम अपडेट और केस ट्रैकिंग सिस्टम की कमी को भी बड़ी चुनौती बताया है.

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