कितना कोहरा होने पर रद्द होती हैं उड़ानें, लैंडिंग या टेकऑफ क्या है ज्यादा रिस्की?

Flights Cancelled: कोहरे का वक्त ऐसा होता है जब रफ्तार पर ब्रेक लग जाता है. फिर चाहे वह ट्रेनें हों या फिर विमान. इन दिनों कोहरे के चलते कई उड़ानें या तो रद्द हो रही हैं या फिर देरी से चल रही हैं. जानते हैं कितने कोहरे पर फ्लाइट कैंसिल होती हैं.

Flights Cancelled: कोहरे का वक्त ऐसा होता है जब रफ्तार पर ब्रेक लग जाता है. फिर चाहे वह ट्रेनें हों या फिर विमान. इन दिनों कोहरे के चलते कई उड़ानें या तो रद्द हो रही हैं या फिर देरी से चल रही हैं. जानते हैं कितने कोहरे पर फ्लाइट कैंसिल होती हैं.

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Dheeraj Sharma
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When Flight Cancelled in Fog

Flights Cancelled: उत्तर भारत में छाया घना कोहरा अब सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं है, बल्कि हवाई यातायात को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. एक्सप्रेसवे पर लगातार हो रहे हादसों के बाद अब फ्लाइट ऑपरेशन पर इसका असर साफ दिखाई दे रहा है. दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हालात सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं, जहां सैकड़ों उड़ानें रद्द या देरी का शिकार हो रही हैं. खराब दृश्यता के चलते यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है और कई बार सफर पूरी तरह कैंसिल करना पड़ रहा है.

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हालांकि ये कोई नई बात नहीं है हर वर्ष सर्दियों के दिनों में फॉग के चलते ये चुनौती देखने को मिलती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर कितना कोहरा होने पर फ्लाइटें कैंसिल की जाती हैं. यही नहीं लैंडिंग और टेकऑफ में ज्यादा जोखिम वाला क्या होता है. आइए जानते हैं ऐसे ही सवालों के जवाब. 

एयरलाइंस और एविएशन अथॉरिटी की चेतावनी

कोहरे की गंभीरता को देखते हुए इंडिगो, एयर इंडिया और स्पाइसजेट जैसी प्रमुख एयरलाइंस ने ट्रैवल एडवाइजरी जारी की है. यात्रियों को सलाह दी गई है कि वे एयरपोर्ट पहुंचने से पहले अपनी फ्लाइट का स्टेटस जरूर जांच लें. भारतीय विमानन प्राधिकरण ने भी स्पष्ट किया है कि घने कोहरे के दौरान उड़ानों में व्यवधान सामान्य बात है. खासकर दिल्ली, उत्तर और पूर्व भारत के बड़े एयरपोर्ट्स पर यह समस्या ज्यादा देखी जा रही है.

फ्लाइट कैंसिल होने का पैमाना क्या है?

अक्सर लोगों के मन में सवाल होता है कि आखिर कितनी विजिबिलिटी कम होने पर फ्लाइट कैंसिल कर दी जाती है. इसका जवाब इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम यानी ILS से जुड़ा है. ILS विमान को सुरक्षित तरीके से रनवे तक लाने में मदद करता है. इसके दो मुख्य हिस्से होते हैं-लोकलाइजर और ग्लाइडस्लोप. ये पायलट को यह बताते हैं कि विमान रनवे के सेंटरलाइन और सही ढलान पर है या नहीं.

ILS की कैटेगरी कैसे तय होती है?

ILS को चार अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है. हर कैटेगरी दो अहम फैक्टर्स पर आधारित होती है. पहला है डिसीजन हाइट (Decision Height), यानी वह न्यूनतम ऊंचाई जहां पहुंचकर पायलट को फैसला लेना होता है कि लैंडिंग सुरक्षित है या नहीं. दूसरा है रनवे विजुअल रेंज (RVR), यानी वह दूरी जहां से पायलट रनवे की लाइट्स या मार्किंग्स देख सकता है. अगर विजिबिलिटी तय सीमा से कम हो जाती है, तो लैंडिंग या टेकऑफ की अनुमति नहीं दी जाती.

टेकऑफ या लैंडिंग क्या है ज्यादा जोखिम भरा?

एविएशन रिसर्च के मुताबिक, विमान यात्रा के कुल समय का बहुत छोटा हिस्सा लैंडिंग में लगता है, लेकिन सबसे ज्यादा हादसे इसी चरण में होते हैं. कम विजिबिलिटी में पायलट को रनवे दिखाई न देने का खतरा रहता है, जिससे गलती की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि ILS सिस्टम लगातार संकेत देता रहता है, फिर भी आखिरी फैसला सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया जाता है. यही वजह है कि घने कोहरे में लैंडिंग को टेकऑफ की तुलना में कहीं ज्यादा जोखिम भरा माना जाता है.

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