UCC In Uttarakhand: समान नागरिकता कानून यानी UCC को लेकर उत्तराखंड से बड़ी खबर सामने आई है. दरअसल गोवा के बाद अब उत्तराखंड में भी यूसीसी लागू करने की कवायद अपने अंतिम चरण में हैं. शनिवार 2 फरवरी को जस्टिस देसाई की कमिटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को इसका ड्राफ्ट सौंप दिया है. अब 6 फरवरी को प्रदेश के विधानसभा सत्र में इसे पेश किया जाना है. माना जा रहा है कि पेश होने के साथ ही ये पास होने का रास्ता भी साफ हो जाएगा. शनिवार की सुबह मुख्य सेवक सदन में हुए एक कार्यक्रम के दौरान यूसीसी समिति की अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने मसौदा समिति के सदस्यों के साथ सीएम पुष्कर सिंह धामी को खास रिपोर्ट सौंप दी है.
2 साल पहले बनाई थी कमेटी
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दो वर्ष पहले यानी 27 मई 2022 को ही UCC को लेकर पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी को इससे जुड़ा एक ड्राफ्ट तैयार करने को कहा गया था. इसी ड्राफ्ट को कमेटी ने 2 फरवरी 2024 को सीएम धामी को सौंपा है. ड्राफ्ट मिलने के बाद अब सरकार इसे कैबिनेट में मंजूरी के लिए देगी. बताया जा रहा है कि धामी सरकार 6 फरवरी को यूसीसी विधेयक भी विधानसभा में पेश कर सकती है. जहां से इसके लागू होने पर मुहर भी लग सकती है.
यह भी पढ़ें - Delhi: अरविंद केजरीवाल ED के सामने आज भी नहीं होंगे पेश, समन को बताया गैरकानूनी
गोवा में पहले से लागू है UCC
बता दें कि उत्तराखंड से पहले यूसीसी गोवा में लागू हो चुका है. इसके तहत मुस्लिम समाज के लोगों को यहां पर विवाह का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. इसके अलावा वे संबंध विच्छेद यानी तलाक के लिए 3 तलाक का सहारा नहीं ले सकते.
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी UCC को हिंदी में समान नागरिक संहिता भी कहा जाता है. इसका मतलब है भारत में रहने वाले हर नागरिक को एक जैसे कानूनी अधिकार हों. फिर धर्म या जाति के आधार पर किसी को कोई रियायत या फिर लाभ नहीं दिया जा सकता. यही नहीं समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन से जुड़े मामले में सभी धर्मों के लिए एक जैसा ही कानून होगा. यह पंथ निरपेक्ष कानून है और सभी धर्म और जाति के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है. हालांकि इसको लेकर देशभर में बहस भी जारी है.
देश में मुस्लिम, इसाई और पारसी समुदाय का अपना निजी लॉ भी लागू है. वहीं हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख और जैन आते हैं. जबकि संविधान में समान नागरिक संहिता अनुच्छेद 44 की मानें तो इसे प्रदेश की जिम्मेदारी बताया गया है.
Source : News Nation Bureau