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marriage Photograph: (social media)
शादी समारोहों में दूल्हा-दुल्हन तो सजते-संवरते ही हैं, लेकिन समारोह में आने वाले मेहमानों में भी मानो महंगे कपड़े व सोने के गहने पहनकर शो-ऑफ करने की होड़-सी मची रहती है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उत्तराखंड में लोगों को विवाह समारोहों में सादगी का परिचय देने के लिए प्रोत्साहित करने उद्देश्य से एक अनोखी पहल की गई है. ये पहल की है, प्रदेश के दो गांवों ने. वहां अब किसी विवाह समारोह में यदि कोई महिला मंगलसूत्र, कान के कुंडल और नाक की फुली के अतिरिक्त कोई और गहना पहले नजर आती है, तो स्थानीय ग्रामीणों के फैसले के अनुसार उस पर जुर्माना लगाया जाएगा.
प्रचार करने वाले ये नियम बनाए
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रदेश के देहरादून जिले के जौनसार-बावर इलाके के दो गांवों ने विवाह समारोहों में सादगी का प्रचार करने वाले ये नियम बनाए हैं. दरअसल इस क्षेत्र के चकराता ब्लॉक के कंदाड़ और इद्रोली नाम के दो गांवों ने फैसला किया है कि इन गांवों में विवाह समारोहों या अन्य आयोजनों में महिलाएं अब सोने के आभूषणों में केवल मंगलसूत्र, कान के कुंडल और नाक की फुली ही पहन सकेंगी.
तीन सोने के आभूषण पहन सकेंगी
इन दोनों गावों में रहने वाले ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से फैसला किया है कि सार्वजनिक आयोजनों में इन गांवों की महिलाएं केवल यही तीन सोने के आभूषण पहन सकेंगी. अगर इन गांवों की कोई महिला इन तीन आभूषणों के अलावा कोई और गहने पहनती है, तो ये ग्रामीण उस पर 50,000 रूपए का जुर्माना लगाया सकते हैं. यह फैसला ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से किया है. बताया जाता है कि इस पहल के पीछे स्थानीय ग्रामीणों का उद्देश्य समाज में सादगी और समानता का प्रसार करना है.
आर्थिक असमानता को कम करने की कोशिश
दरअसल जो परिवार आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न होते हैं, वे विवाह समारोहों में महंगे कपड़े और ज्यादा सोने के आभूषण पहनकर अपनी धन-दौलत का प्रदर्शन करते हैं. फिर संपन्न परिवारों के बीच होड़-सी मच जाती है कि कौन अपनी संपन्नता का ज्यादा प्रदर्शन करता है. इससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लोगों के बीच असहजता पैदा होती है. कई कमजोर तबके के लोग उधार लेकर सोने के गहने पहनते हैं. यही वजह है कि इन दोनों गांवों के ग्रामीणों ने आर्थिक असमानता को कम करने की कोशिश की है. वे चाहते हैं कि संपन्नता का दिखावा कम किया जाए, जिससे कमजोर तबके के लोगों पर आर्थिक दबाव कम हो. बताया जाता है कि दोनों गांवों के ग्रामीणों ने सामूहिक बैठक करके यह महत्वपूर्ण फैसला किया है और इसे एक सामाजिक सुधार आंदोलन कहा जा सकता है.
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