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विश्वविद्यालय की आधारशिला से जाटलैंड में सियासी समीकरण बदलने की कोशिश

उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति सत्ता बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाती रही है. वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में छह से आठ फीसदी जाट समुदाय हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह 17 फीसद है.

Updated on: 15 Sep 2021, 10:30 AM

highlights

  • उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति सत्ता बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाती रही है
  • 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद जाटलैंट में मुस्लिम-जाट समीकरण टूटा
  • जाट राजनीति के सम्मानित नामों में राजा महेंद्र प्रताप, सर छोटूराम व चौधरी चरण सिंह शामिल

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा जातीय समीकरण को साधने में जुट गयी है. किसान आंदोलन से छिटके कृषक जातियों को मनाने के लिए भाजपा केंद्रीय स्तर पर रणनीति बना रही है. उसी कड़ी में जाटों को मनाने के लिए अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी गयी. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा महेंद्र प्रताप चुनावी मोर्चे पर जाटलैंड में भाजपा को कितना फायदा पहुंचा पायेंगे, यह को भविष्य के गर्भ में है. लेकिन भाजपा ने  पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड की सियायत में आजादी के संघर्ष के गुमनाम चेहरे हो गए राजा महेंद्र प्रताप के नाम को खींच लायी है. जाट राजनीति के कुछ सम्मानित नाम हैं. जिसमें राजा महेंद्र प्रताप, सर छोटूराम व चौधरी चरण सिंह शामिल हैं. 

भाजपा लंबे समय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजा महेंद्र प्रताप के नाम को जाटों के बीच ले जा रही है. पहले अलीगढ़ विश्वविद्यालय को इनके द्वारा दी गयी जमीन का मुद्दा उठाकर जाटों को लामबंद करने की कोशिश की गयी, लेकिन सफलता नहीं मिली. अब अलीगढ़ में उनके नाम पर विश्वविद्यालय का शिलान्यास करके जाटों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की जा रही है.   

उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति सत्ता बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाती रही है. वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में छह से आठ फीसदी जाट समुदाय हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह 17 फीसद है. विधानसभा की 120 सीटों में जाट फैले हुए हैं, लेकिन वह लगभग 50 सीटों के चुनावी समीकरण बनाते-बिगाड़ते हैं. विधानसभा में अभी 14 जाट विधायक हैं. इनमें अधिकांश भाजपा के हैं और जाट विरासत की राजनीति करने वाली रालोद के पास मात्र एक विधायक है.

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दरअसल, भाजपा की रणनीति 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने और 2024 के लिए जमीन मजबूत करने पर केंद्रित है. 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद जाटलैंट की सियासत बदली और मुस्लिम जाट समीकरण भी टूटा. इसका लाभ भाजपा को मिला. अब किसान आंदोलन में नए समीकरण बनने से भाजपा की चिंताएं बढ़ी हुई हैं. कहीं जाट समर्थन खिसक न जाए, ऐसे में जाट समुदाय को उनके नायकों के साथ उभारने की कोशिश की जा रही है.

अलीगढ़ का कार्यक्रम वैसे तो सरकारी था, लेकिन तासीर राजनीतिक रही. संदेश भी पश्चिम से पूर्व तक के लिए था. राजा महेंद्र सिंह व सर छोटूराम जाट राजनीति की सियासत को आगे बढ़ाते हैं तो महाराजा सुहेलदेव पूर्वी क्षेत्र में मजबूत राजभर समुदाय के प्रेरक नायक रहे हैं. मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही इन तीनों का खास जिक्र कर साफ किया है कि राजनीति में भाजपा के निशाने और लक्ष्य क्या हैं.  किसान आंदोलन को कुछ लोग जाट आंदोलन भी बताने लगे हैं. ऐसे में जाटलैंड में मोदी का संदेश भी अहम है.