उत्तर प्रदेश में थारू जनजाति की दीवार चित्रकला बन रही है नई पर्यटन पहचान, तराई का गांव बना ‘लिविंग आर्ट गैलरी’

थारू जनजाति की पारंपरिक म्यूरल आर्ट उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र को सांस्कृतिक पर्यटन का नया केंद्र बना रही है. प्राकृतिक रंगों से बनी ये पेंटिंग्स दैनिक जीवन, त्योहारों और प्रकृति की सुंदरता को अनोखे अंदाज़ में दर्शाती हैं। यूपी सरकार इस कला को पर्यटन प्रमोशन का अहम हिस्सा बना रही है.

थारू जनजाति की पारंपरिक म्यूरल आर्ट उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र को सांस्कृतिक पर्यटन का नया केंद्र बना रही है. प्राकृतिक रंगों से बनी ये पेंटिंग्स दैनिक जीवन, त्योहारों और प्रकृति की सुंदरता को अनोखे अंदाज़ में दर्शाती हैं। यूपी सरकार इस कला को पर्यटन प्रमोशन का अहम हिस्सा बना रही है.

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Ravi Prashant
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Tharu tribal wall paintings

थारू जनजाति की पारंपरिक म्यूरल आर्ट Photograph: (X/@uptourismgov)

उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र इन दिनों अपनी अनोखी और जीवंत कला परंपरा के कारण पर्यटन के नए नक्शे पर तेजी से उभर रहा है. यहां की थारू जनजाति न केवल अपनी अनूठी संस्कृति के लिए जानी जाती है, बल्कि उनकी म्यूरल आर्ट यानी दीवारों पर उकेरी गई लोककला आज घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित कर रही है. गांव की सादगी से भरी दीवारें जब थारू कला से रंगती हैं, तो वे सिर्फ पेंटिंग नहीं रहतीं, बल्कि कहानियों की एक जीवंत दुनिया बन जाती हैं.

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हर पेंटिंग एक कहानी कहती है

थारू समुदाय की महिलाएं मिट्टी और चूने से बनी दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से जीवन के रोजमर्रा के पलों, त्योहारों, वन्यजीवन और प्रकृति की लय को चित्रित करती हैं. काला रंग धुएं से, लाल रंग गेरू से और अन्य रंग मिट्टी व पौधों के अर्क से तैयार किए जाते हैं. यही कारण है कि यह कला न सिर्फ खूबसूरत लगती है, बल्कि प्रकृति के प्रति गहरे सम्मान का प्रतीक भी बनती है.

जो पर्यटक तराई क्षेत्र के गांवों में पहुंचते हैं, उन्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो वे किसी ओपन-एयर म्यूजियम में घूम रहे हों. घरों की दीवारों पर उकेरी गई ये आकृतियां नाचती महिलाएं, त्योहार मनाते परिवार, जंगल के जीव-जंतु, खेतों के दृश्य इतनी सहज और आत्मीय हैं कि हर पेंटिंग एक कहानी कहती 

सदियों पुरानी कला आधुनिक दौर में भी

कैमरे की क्लिक के साथ-साथ यह कला यात्रियों के दिल में भी अपनी छाप छोड़ देती है.उत्तर प्रदेश सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए थारू जनजाति की इस विशिष्ट कला को ‘सांस्कृतिक पर्यटन सर्किट’ का हिस्सा बना रही है। सरकार स्थानीय कलाकारों को ट्रेनिंग, प्रमोशन और प्रदर्शनी के माध्यम से प्रोत्साहित कर रही है, ताकि यह सदियों पुरानी कला आधुनिक दौर में भी चमकती रहे. 

तो क्या सर्दी में घूमने का बना रहे हैं प्लान?

साथ ही, गांवों को होमस्टे मॉडल के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे पर्यटक न सिर्फ कला देखें बल्कि थारू समुदाय की संस्कृति को करीब से महसूस भी कर सकें. सर्दियों में घूमने का प्लान बना रहे हैं तो तराई क्षेत्र की यह रंगीन यात्रा आपके सफर में संस्कृति, परंपरा और कला का अनोखा संगम जोड़ देगी। थारू कला केवल दीवारों तक सीमित नहीं. यह उत्तर प्रदेश की जीवंत विरासत का उत्सव है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर के यात्री अब कदम बढ़ा रहे हैं.

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