Ayodhya: इस रामनवमी पर फिर होगा रामलला का सूर्य तिलक, 19 वर्षों तक लगातार होगी प्रक्रिया

अयोध्या में रामलला के सूर्य तिलक की व्यवस्था स्थायी कर दी गई. अब अगले 19 वर्षों तक सूर्य की किरणें रामलला का अभिषेक करेंगी. खास बात है कि हर साल सूर्य तिलक का समय कुछ न कुछ बढ़ता रहेगा.

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Jalaj Kumar Mishra
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Ramlala Surya Tilak on Ram Navami Continue to next 19 Years

भगवान राम के जन्मोत्सव के दिन रामलला के सूर्य तिलक की व्यवस्था स्थाई हो गई है. इस रामनवमी से लगातार 19 वर्षों तक रामजन्मोत्सव पर सूर्य की किरणें रामलला का अभिषेक करेंगी. सूर्य की किरणों को मंदिर के शिखर से गर्भगृह तक लाया जाएगा. खास तरह के मिरर और लेंस इसके लिए लगाए जा रहे हैं. रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम अयोध्या पहुंच गई है. सूर्य तिलक के लिए उपकरण लगाए जा रहे हैं. अगले 19 वर्षों तक सूर्य तिलक का वक्त हर साल बढ़ता ही जाएगा. 

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वैज्ञानिकों की टीम ने इसके लिए एक प्रोग्राम भी डेवलप कर लिया है, जिसे कंप्यूटर में फीड कर दिया गया है. इस बार रामजन्मोत्सव पर छह अप्रैल को पर्व मनाया जाएगा. इस दिन ठीक दोपहर 12 बजे रामलला का सूर्य तिलक होगा. इसे वैज्ञानिकों ने सूर्य तिलक मैकेनिज्म नाम दिया है. वैज्ञानिक ने इस मैकेनिज्म को इस प्रकार से डेवलप किया है कि दोपहर ठीक 12 बजे 75 मिमी के गोलाकार रूप में सूर्य की किरणें तीन से चार मिनट के लिए भगवान के माथे पर पड़ेंगी. खास बात है कि इसमें किसी प्रकार की बिजली, बैटरी या फिर लोह का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. 

चंद्र कैलेंडर से निर्धारित होती है राम नवमी की तारीख

भारतीय खगोलीय भौतिकी संस्थान बेंगलूरू की रिसर्च के अनुसार, सूर्य तिलक का समय हर साल बढ़ता रहेगा. ये 19 साल तक लगातार कुछ न कुछ बढ़ता रहेगा. खास बात है कि 19 साल बाद 2044 में उतनी ही देर के लिए रामलला का सूर्यतिलक होगा, जितनी देर के लिए 2025 में होगा. चंद्र कैलेंडर के हिसाब से रामनवमी की तारीख निर्धारित होगी. भारत के प्रमुख संस्थानों में शामिल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने चंद्र व सौर (ग्रेगोरियन) कैलेंडरों के बीच आने वाली समस्या का सामाधान किया है.  

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इन मंदिरों में होता है सूर्य तिलक

सूर्य तिलक मैकेनिज्म का इस्तेमाल पहले से ही कुछ जैन मंदिरों और कोणार्क के सूर्य मंदिर में किया जाता है. हालांकि, उनमें दूसरे तरह की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया जाता है. अयोध्या के राम मंदिर का मैकेनिज्म भी उनकी तरह ही है बस इंजीनियरिंग का अंतर है.

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