दिव्यांग लड़की ने भरी आसमान में उड़ान, एकाग्र मन और कड़ी मेहनत से बनी डॅाक्टर

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.....ये कहानी एक ऐसी ही लडक़ी है जिसके बड़ी शारीरिक दिव्यांगता के बावजूद के हौसले से न सिर्फ डॉक्टर बनने के अपने सपने को साकार किया

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.....ये कहानी एक ऐसी ही लडक़ी है जिसके बड़ी शारीरिक दिव्यांगता के बावजूद के हौसले से न सिर्फ डॉक्टर बनने के अपने सपने को साकार किया

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Sunder Singh
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DIVYANG

file photo( Photo Credit : News Nation)

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.....ये कहानी एक ऐसी ही लडक़ी है जिसके बड़ी शारीरिक दिव्यांगता के बावजूद के हौसले से न सिर्फ डॉक्टर बनने के अपने सपने को साकार किया है बल्कि उसके जैसे न जाने कितने दिव्यांग बच्चों के लिए बड़ी मिसाल भी पेश की है कि अगर खुद पर विश्वास और कुछ करने का जज़्बा हो तो वो कैसे अपनी कमज़ोरी को ही अपनी सफलता का मंत्र बना सकते हैं. यशी ने साबित कर दिया है कि एकाग्र मन और कड़ी मेहनत से कोई मंजिल पाना कठिन नहीं है.

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यशी कुमारी सेरेबल पाल्सी से पीड़ित एक लड़की है... लेकिन उसने अपनी इच्छा शक्ति से वो कर दिखाया जो आम तौर पर किसी सामान्य स्टूडेंट के लिए बेहद कठिन है .यशी का बचपन से सपना था कि वो बड़ी होकर डॉक्टर बने और हाल में उसने नीट क्वालीफाई कर उस सपने को सच कर दिखाया है . दाएं हाथ और पैर से दिव्यांग यशी न तो ठीक से चल सकती है और न  दाएं हाथ से कोई काम कर सकती लेकिन उसने अपने बाएं हाथ से लिखने और दूसरे काम का अभ्यास किया और नीट पास कर कोलकाता के नामचीन मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया .यशी कहती है कि भले ही उसका हाथ और पैर खराब है लेकिन वो अपने ब्रेन से सब पर कंट्रोल कर सकती है, वो कहती है जब वो दिमाग से ऐसी नही है मेरा पैर मुझे कैसे रोक सकता है.publive-image

यशी आगे बताती है कि इस सफलता के लिए उसने खुद पर विश्वास बनाये रखा, मेहनत की और उन लोगों की बातों को अनदेखा किया जो ये समझते थे कि वो एक दिव्यांग लकड़ी है और जीवन मे कुछ नहीं कर सकती. यशी बताती है कि सफलता के लिए उसने अपने समय और दिनचर्या को तय कर लिया था और कड़ाई से उसपर चलती रही .वो बताती है कि उनके पिता और घरवालों के मना करने के बावजूद उसने अपने बाएं हाथ से ही अपना सारा काम करना शुरू किया. चाहे बालों को कंघी करना हो, कपड़े धोने हो या कुछ और वो कहती है कि हमने कभी खुद को असामान्य नहीं समझा और इसी जिद और जुनून के चलते उसने अपने वो मुकाम हासिल किया जो अब तक सेरेबल पाल्सी से पीड़ित एक या दो बच्चे ही हासिल कर पाए थे.

Source : Manvendra Singh

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