logo-image

UP में गोहत्या निरोधक कानून के आड़ में निर्दोषों को फंसाया जा रहा है: HC

देश में गो हत्या के आरोप में कई निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. गो मांस खाने और ले जाने संदेह में उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य हिस्सों में भी बहुत से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. कुछ लोग गोहत्या निरोधक कानून 1955 की आड़ में अपना हित साधने में जुटे हुए है.

Updated on: 27 Oct 2020, 09:38 AM

प्रयागराज:

देश में गो हत्या के आरोप में कई निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. गो मांस खाने और ले जाने संदेह में उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य हिस्सों में भी बहुत से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. कुछ लोग गोहत्या निरोधक कानून 1955 की आड़ में अपना हित साधने में जुटे हुए है. इन्हीं मामलों को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को गोहत्या निरोधक कानून के गलत इस्तेमाल को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की. 

और पढ़ें: बैतूल में भीड़ ने गौ तस्करी के आरोप में की एक शख्स की पिटाई

हाईकोर्ट ने कहा, निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए इस कानून का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. फॉरेंसिक सबूत के बिना किसी भी मीट को गोमांस बता दिया जाता है. कथित गोहत्या और बीफ बिक्री मामले में आरोपी रहमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने अपने आदेश में कहा कि यूपी में गोहत्या निरोधक कानून 1955 के प्रावधानों का गलत उपयोग कर लोगों को जेल जेल भेजा जा रहा है.  

हाईकोर्ट  ने इस मामले में सुनवाई करते हुए आगे कहा कि निर्दोष लोगों के खिलाफ गोहत्या निरोधक कानून का इस्तेमाल किया जा रहा है. जब भी कहीं से कोई मांस जब्त किया जाता है तो इसे बिना किसी जांच या फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर गोमांस बता दिया जाता है. बहुत से मामलों में मांस के बिना किसी जांच और विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है. बहुत से निर्दोषों को ऐसे अपराध के लिए जेल भेज दिया गया या वहां रखा गया जो शायद उन्होंने किया ही नहीं था. जो कि 7 साल तक की अधिकतम सजा होने के चलते प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाते हैं..

वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने  19 अक्टूबर के आदेश में कहा था कि जो गायें बूढी या वृद्ध हो गई हैं या फिर दूध देना बंद कर दी है उनका भी ध्यान रखने की जरूरत है. गाय के मालिक उन्हें इस अवस्था में छोड़ कहीं भी छोड़ देते है. अगर सरकार गोवंश की रक्षा के लिए गोहत्या निरोधक कानून लाती है तो उन्हें इस बारे में भी सोचना चाहिए. 

कोर्ट ने मालिकों या आश्रय स्थलों द्वारा गायों को खुला छोड़ने के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि गोशालाएं दूध नहीं देने वाली गायें या बूढ़ी गायें नहीं लेतीं और इन गायों को सड़कों पर घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है. ग्रामीण इलाकों में पशुओं को चारा देने में असमर्थ लोग उन्हें खुला छोड़ देते हैं. पुलिस के भय से इन पशुओं को प्रदेश के बाहर नहीं ले जाया जा सकता. अब चारागाह भी नहीं रहे. इसलिए ये जानवर यहां वहां घूमकर फसलें खराब करते हैं.

ये भी पढ़ें: उत्‍तर प्रदेश में गोवध के खिलाफ योगी सरकार सख्‍त, 10 साल की जेल और 5 लाख जुर्माना लगेगा

कोर्ट ने कहा कि चाहे गायें सड़कों पर हों या खेत में, उन्हें खुला छोड़ने से समाज बुरी तरह प्रभावित होता है. यदि गोहत्या कानून को सही ढंग से लागू करना है तो इन पशुओं को आश्रय स्थलों या मालिकों के पास रखने के लिए कोई रास्ता निकालना पड़ेगा.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने प्रदेश में गोहत्या निषेध कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए रहमू और रहमुद्दीन नाम के दो व्यक्तियों को जमानत दे दी। ये दोनों व्यक्ति कथित तौर पर गोहत्या में शामिल थे. याचिकाकर्ता की दलील थी कि प्राथमिकी में उसके खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं हैं और उसे घटनास्थल से गिरफ्तार नहीं किया गया। इसके अलावा, बरामद किया गया मांस गाय का था या नहीं, इसकी पुलिस द्वारा जांच भी नहीं की गई.