Lucknow: उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी, जो कि 'इंडिया गठबंधन' के साझेदार हैं, अब एक-दूसरे पर ही सवाल उठाते नजर आ रहे हैं. दोनों पार्टियों ने 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत लड़ाई लड़ी, और कुछ हद तक कामयाबी भी हासिल की. लेकिन अब 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर खींचतान तेज हो गई है.
बड़ा बदलाव करने की तैयारी में कांग्रेस
ताजा खबरों की मानें तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है. पार्टी राज्य इकाई के अध्यक्ष को बदल सकती है, और इस बार किसी मुस्लिम चेहरे को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है. इसके पीछे पार्टी की रणनीति साफ है, मुस्लिम वोट बैंक को फिर से अपने पाले में लाना.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मुस्लिम मतदाताओं से अच्छा समर्थन मिला. कई जगहों पर कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट भी दिए. पार्टी को लगता है कि अगर प्रदेश अध्यक्ष मुस्लिम चेहरा होगा, तो अल्पसंख्यक वर्ग का भरोसा और मजबूत होगा. वहीं, संगठन में भी नई ऊर्जा आएगी जो आगामी विधानसभा चुनाव के लिए फायदेमंद हो सकती है.
ऐसा खेलेगी पार्टी दाव
लेकिन इस रणनीति से समाजवादी पार्टी की चिंता बढ़ सकती है. सपा लंबे समय से मुस्लिम वोट बैंक को अपना पारंपरिक समर्थन मानती रही है. ऐसे में कांग्रेस का यह दांव सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. खासकर तब, जब अखिलेश यादव खुद कई मौकों पर कांग्रेस पर तंज कस चुके हैं, फिर चाहे वह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र या हरियाणा के चुनाव हों, दोनों दलों के बीच की तल्खियां किसी से छुपी नहीं हैं.
सपा पर बन सकता है दबाव
सपा का कहना है कि जो जहां मज़बूत है, वह वहीं चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस अब खुद को उत्तर प्रदेश की राजनीति में 'बर्गेनिंग पावर' की स्थिति में लाना चाहती है. पार्टी को लगता है कि संगठन को मज़बूत कर और मुस्लिम वोट बैंक को साध कर वह सपा पर दबाव बना सकती है. फिलहाल, 2027 के चुनाव में क्या समीकरण बनेंगे, यह कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस का यह ‘मुस्लिम दांव’ उत्तर प्रदेश की राजनीति को नई दिशा जरूर दे सकता है.
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