Lucknow News: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सीमा पर स्थित भवरेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है. यह ऐतिहासिक मंदिर निगोहां के सई नदी किनारे, लखनऊ, रायबरेली और उन्नाव जिले की सीमाओं के संगम स्थल पर स्थित है. सावन माह में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, जिन्हें देखते हुए मंदिर में तैयारियां जोरों पर हैं.
पौराणिक मान्यता और पांडवों का संबंध
कहा जाता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडव अपनी माता कुंती के साथ यहां आए थे. मां कुंती शिव पूजन के बिना अन्न-जल ग्रहण नहीं करती थीं. तब भीम ने यहां शिवलिंग की स्थापना की. वर्षों बाद यह शिवलिंग मिट्टी में दब गया था. सैकड़ों वर्ष बाद सुदौली रियासत के राजा को एक स्वप्न में इस शिवलिंग का पता चला, जिसके बाद खुदाई कर मंदिर का निर्माण करवाया गया. यहीं से यह स्थान भवरेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
औरंगजेब का हमला और भंवरों का चमत्कार
जनश्रुति के अनुसार, मुगल शासक औरंगजेब मंदिर को नष्ट करने आया था. जब उसने शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की, तभी लाखों भंवरों ने मुगल सेना पर हमला बोल दिया. इस चमत्कारी घटना से घबराकर औरंगजेब को पीछे हटना पड़ा. कहा जाता है कि उसने अपनी गलती मानी और माफी भी मांगी.
अंग्रेजों को भी नहीं मिली सफलता
मुगलों के बाद अंग्रेजों ने मंदिर की ऐतिहासिकता को जांचने के लिए खुदाई कराई. लेकिन खुदाई शुरू होते ही एक बार फिर हजारों भंवरे निकलकर मजदूरों और अफसरों पर टूट पड़े. डर के मारे अंग्रेज अफसरों को खुदाई रोकनी पड़ी और वे वहां से चले गए.
भव्यता और भक्ति का संगम
बाद में सुदौली के राजा रामपाल सिंह की पत्नी गणेश साहिबा ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. सई नदी के तट पर बसा यह मंदिर न केवल धार्मिक रूप से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है. माना जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. हर सावन में यह मंदिर आस्था के सैलाब से भर जाता है. भवरेश्वर महादेव मंदिर आज भी भक्ति, इतिहास और चमत्कारों की जीवंत मिसाल बना हुआ है.
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