दारुल उलूम देवबंद ने बकरीद के लिए जारी किया फतवा, कहा- कुर्बानी देनी ही होगी
इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने एक व्यक्ति के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है. दरअसल, उस शख्स ने देवबंद से ये सवाल पूछा था कि वो बकरीद के मौके पर कुर्बानी में खर्च होने वाले पैसे गरीबों में दान कर सकता है क्या? ये कुर्बानी मानी जाएगी या नहीं.
नई दिल्ली:
इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने एक व्यक्ति के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है. दरअसल, उस शख्स ने देवबंद से ये सवाल पूछा था कि वो बकरीद के मौके पर कुर्बानी में खर्च होने वाले पैसे गरीबों में दान कर सकता है क्या? ये कुर्बानी मानी जाएगी या नहीं. इसके जवाब में देवबंद ने फतवा जारी करते हुए कहा कि कुर्बानी के पैसे से कुर्बानी ही जायज है. कुर्बानी के पैसों को किसी गरीब या मजबूर को देने से कुर्बानी नहीं मानी जाएगी. जिस तरीके से नमाज के बदले जकात, जकात के बदले रोजा और रोजा के बदले हज नहीं हो सकता, ठीक इसी तरीके से कुर्बानी के पैसे किसी को देने से कुर्बानी नहीं होगी. इसलिए जिस पर कुर्बानी वाजिब है, उसे तो हर हाल में कुर्बानी करनी ही करनी है.
दारुल उलूम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने इस मामले पर कहा कि कुर्बानी एक मुस्तकिल इबादत है. एक इबादत दूसरी इबादत का बदला नहीं हो सकती. जैसे नमाज की जगह जकात नहीं हो सकती, जकात की जगह रोजा नहीं हो सकता, रोजे की जगह हज नहीं हो सकता. इसी तरीके से कुर्बानी भी मुस्तकिल एक अलग इबादत है और इसकी जगह किसी दूसरी इबादत को जगह नहीं दी जा सकती. कुर्बानी के पैसे को सदके में देना गलत है.
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उन्होंने आगे ये भी बताया कि देबंद ने गाइडलाइन भी जारी की है और कहा है कि जिस तरीके से कोविड-19 का समय है, उसमें जो सरकार की गाइडलाइन है उसका ख्याल रखा जाए. ऐसी जगह गोश्त के हिस्से न डाला जाए कि वहां से गलत संदेश जाए. इस्लाम एक अमन चैन का मजहब है और उसका इजहार होना चाहिए. मुसलमानों को चाहिए कि वह बहुत अमन शांति के साथ में कुर्बानी करें.
बता दें कि बकरीद इस बार 1 अगस्त को मनाया जाएगा. मुस्लिम समुदाय इस मौके पर जानवरों की कुर्बानी करता है. उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र सहित तमाम राज्य सरकारों ने बकरीद के लिए गाइड लाइन जारी कर दी है.
क्यों मनाई जाती है बकरीद
इस्लाम के मुताबिक, हजरत इब्राहिम की परीक्षा के लिए अल्लाह ने उन्हें अपनी सबसे लोकप्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था. हजरत इब्राहिम को उनका बेटा सबसे प्रिय था, इसलिए उन्होंने उसकी बलि देना स्वीकार किया.
कुर्बानी देते हुए उन्होंने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली थी, जिससे कि उनकी भावनाएं सामने न आ सकें. जब उन्होंने पट्टी हटाई तो अपने पुत्र को जिंदा खड़ा हुआ देखा. सामने कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है.
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तीन हिस्सों में बांटा जाता है गोश्त
इस्लाम में बकरीद के त्योहार को फर्ज-ए-कुर्बान के नाम से भी जाना जाता है. इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है. इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं. ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं.
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