Allahabad HC में काशी विश्वनाथ मंदिर की आज से फिर शुरू होगी सुनवाई
याचिकाकर्ता के मुताबिक वाराणसी की स्थानीय अदालत ने विगत वर्ष 8 अप्रैल को आदेश पारित कर एएसआई को सर्वेक्षण का निर्देश दिया था जो अवैध और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का आदेश था.
highlights
- पहले 29 मार्च से होनी थी मसले की नियमित सुनवाई
- संय के अभाव में सुनवाई रुकी. आज से फिर होगी शुरू
इलाहाबाद:
इलाहाबाद हाई कोर्ट शुक्रवार से काशी विश्व नाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में फिर से सुनवाई शुरू करेगा. अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल याचिका पर जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच पूरे मसले की सुनवाई करेगी. इस याचिका में मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वेक्षण के वाराणसी न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है. इसके साथ ही याचिका में वाराणसी जिला न्यायालय के आदेश को वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन बताया गया है. हालांकि अदालत ने एएसआई के काम पर फिलहाल रोक लगा दी है.
29 मार्च से नहीं शुरू हो सकी नियमित सुनवाई
मंदिर के पक्षकार ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि संपत्ति का विवाद नहीं है, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ी भावनाओं का मसला है. मुगल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर के अंश को तोड़कर मस्जिद बनाया था. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मस्जिद के स्थान को लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ मंदिर की जगह बताया है. गौरतलब है कि पहले इस मसले की 29 मार्च से नियमित सुनवाई होनी थी, लेकिन समय के अभाव के चलते पिछली तारीख पर बहस पूरी नहीं हो सकी.
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स्थानीय अदालत ने दिया था एएसआई को सर्वेक्षण का निर्देश
याचिकाकर्ता के मुताबिक वाराणसी की स्थानीय अदालत ने विगत वर्ष 8 अप्रैल को आदेश पारित कर एएसआई को सर्वेक्षण का निर्देश दिया था जो अवैध और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का आदेश था. उल्लेखनीय है कि अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का समग्र भौतिक सर्वेक्षण कराने के लिए दो हिंदू, दो मुस्लिम सदस्यों और एक पुरातत्व विशेषज्ञ की पांच सदस्यीय समिति गठित करने का आदेश दिया था. मूल वाद वाराणसी में 1991 में दायर किया गया था जिसमें प्राचीन मंदिर को जहां ज्ञानवापी मस्जिद वर्तमान में मौजूद है, बहाल करने का अनुरोध किया गया था.
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पूजा अधिनियम का उल्लंघन नहीं
पिछली सुनवाई में केंद्र के वकील ने दलील दी कि तथ्यों से स्पष्ट है कि भगवान विश्वेश्वर का मंदि सतयुग से अस्तित्व में है और स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर उस विवादित ढांचे में विराजमान हैं. इसलिए विवादित जमीन स्वयं में भगवान विश्वेश्वर का एक आंतरिक भाग है. यह दलील भी दी गई कि मंदिर का आकार चाहे जो भी हो, भूतल का तहखाना अब भी वादी के कब्जे में है जोकि 15वीं शताब्दी से पूर्व निर्मित मंदिर का ढांचा है. साथ ही उस पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र जो 15 अगस्त, 1947 के दिन था, वैसा ही बना हुआ है. इसलिए पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधानों को यहां लागू नहीं किया जा सकता.
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