Hijab Controversy: उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा के दौरान एक बार फिर हिजाब विवाद (Hijab Controversy) सामने आया है. मामला यूपी के जौनपुर जिले का है, जहां परीक्षा देने आई चार छात्राओं को जब हिजाब हटाने के लिए कहा गया, तो उन्होंने परीक्षा छोड़ने का फैसला कर लिया और बिना पेपर दिए ही घर लौट गईं.
क्या है पूरा मामला?
घटना खुदौली के सर्वोदय इंटर कॉलेज की है, जहां सोमवार को यूपी बोर्ड की 10वीं की परीक्षा हो रही थी. परीक्षा केंद्र पर नियमों के अनुसार छात्राओं को ड्रेस कोड का पालन करना होता है, जिसमें चेहरा पूरी तरह से दिखना चाहिए. जब केंद्र पर ड्यूटी में लगे शिक्षकों ने छात्राओं से हिजाब हटाने को कहा, तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
जब शिक्षकों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि परीक्षा में सुरक्षा कारणों से चेहरा दिखाना जरूरी है, तब भी छात्राएं अपनी जिद पर अड़ी रहीं और परीक्षा देने से इनकार कर दिया. इसके बाद वे बिना परीक्षा दिए ही घर लौट गईं.
क्या कहते हैं परीक्षा नियम?
उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में सभी परीक्षार्थियों को सख्त चेकिंग प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. किसी भी तरह की गोपनीय या संदिग्ध चीजें पहनने पर रोक होती है, ताकि नकल और अन्य अनुचित गतिविधियों को रोका जा सके.
परीक्षा केंद्र पर मौजूद अधिकारियों के मुताबिक –
परीक्षा में बैठने से पहले छात्रों की पहचान जरूरी होती है.
सिर और चेहरे को ढकने वाली किसी भी चीज को हटाना अनिवार्य है.
यह नियम सभी परीक्षार्थियों पर लागू होता है, चाहे वह लड़का हो या लड़की.
विवाद और प्रतिक्रियाएं
इस घटना के बाद हिजाब को लेकर एक बार फिर सामाजिक और राजनीतिक बहस शुरू हो गई है. कई लोगों का मानना है कि छात्राओं को परीक्षा के नियमों का पालन करना चाहिए था, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए.
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस मामले की जांच की जाएगी, लेकिन परीक्षा के नियम सभी के लिए समान हैं और उनकी पालना करना जरूरी है.
क्या छात्राओं को दोबारा मौका मिलेगा?
फिलहाल, इन चारों छात्राओं के लिए कोई री-एग्जाम की घोषणा नहीं हुई है. यदि वे इस साल परीक्षा नहीं देती हैं, तो उन्हें अगले वर्ष दोबारा परीक्षा में बैठना होगा.
हिजाब विवाद को लेकर यह कोई पहला मामला नहीं है. परीक्षा के दौरान सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखने के लिए नियम बनाए जाते हैं, और सभी छात्रों को उन्हें मानना चाहिए. हालांकि, इस तरह के मामलों पर सरकार और शिक्षा विभाग को एक स्पष्ट नीति बनानी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न बने.
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