राजा मानसिंह हत्याकांड पर 35 साल के बाद आया फैसला,11 दोषियों को आज सुनाई जा सकती है सजा

सीबीआई ने जांच के पश्चात जयपुर स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. किंतु, मुकदमे की सुनवाई भली प्रकार से न होते देख उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में फरियाद की जिससे यह मामला वर्ष 1990 में मथुरा के जिला न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया.

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Ravindra Singh
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राजा मान सिंह हत्याकांड में 35 साल बाद आया फैसला( Photo Credit : फाइल)

राजस्थान के भरतपुर जनपद के चर्चित राजा मानसिंह हत्याकाण्ड में आज मथुरा की जिला अदालत ने सुनवाई करते हुए आरोपी पुलिसकर्मियों में से तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक सहित 11 को दोषी करार दिया है तथा तीन को बरी कर दिया है. दोषी पाए गए सभी पुलिसकर्मियों को जमानत रद्द कर जेल भेज दिया गया है. इस मामले में बुधवार को सजा सुनाई जा सकती है. जिला शासकीय अधिवक्ता (अपराध) शिवराम सिंह तरकर ने बताया, 35 वर्ष पूर्व भरतपुर में विधान सभा चुनाव के दौरान 21 फरवरी 1985 को एक घटना में डीग से स्वतंत्र चुनाव लड़ रहे राजा मानसिंह को उनके द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की चुनावी सभा के लिए तैयार किए गए मंच को अपनी जोंगा जीप से टक्कर मारकर तोड़ दिए जाने के कथित आरोप में तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक कानसिंह भाटी सहित डेढ़ दर्जन पुलिसकर्मियों ने घेर कर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी थीं.

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तरकर ने बताया कि इस घटना में राजा मानसिंह एवं उनके दो अन्य साथी सुम्मेर सिंह और हरी सिंह की मौत हो गई थी. घटना के बाद तीनों के शव जोंगा जीप में पड़े मिले थे. राजा मानसिंह के साथ उस समय मौजूद उनके दामाद एवं उनकी पुत्री दीपा कौर के पति विजय सिंह सिरोही ने जैसे-तैसे अपनी जान बचाई थी. उन्होंने अगले दिन इस मामले में डीएसपी कानसिंह भाटी सहित थानाध्यक्ष, निरीक्षक व उप निरीक्षक सहित 18 पुलिसकर्मियों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था. इसी दिन पुलिस ने भी राजा मानसिंह के विरुद्ध डीग थाने में पुलिस पर हमला एवं गोलीबारी करने का मामला दर्ज कराया था जबकि पुलिस एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री के लिए सजाया गया मंच तोड़ने का एक मुकदमा पहले ही दर्ज कर चुकी थी.

डीग की विधायक रहीं राजा मानसिंह की पुत्री कृष्णेंद्र दीपा कौर ने बताया कि प्रारम्भिक तौर पर इस मामले की जांच भरतपुर पुलिस द्वारा की गई तथा बाद में उनकी मांग पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई. सीबीआई ने जांच के पश्चात जयपुर स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. किंतु, मुकदमे की सुनवाई भली प्रकार से न होते देख उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में फरियाद की जिससे यह मामला वर्ष 1990 में मथुरा के जिला न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया. डीजीसी (क्राइम) ने बताया, जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद मंगलवार को 14 में से पुलिस उपाधीक्षक कानसिंह भाटी सहित 11 आरोपियों को दोषी करार दिया तथा तीन को बरी कर दिया. इन सभी के खिलाफ भादवि की धारा 147, 148, 149, 302 व 323 आदि के तहत कार्यवाही की गई थी.

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चार्जशीट में आरोपी बनाए गए 18 पुलिसकर्मियों में से डीएसपी कानसिंह भाटी के चालक कांस्टेबल महेंद्र सिंह को पूर्व में ही बरी किया जा चुका था तथा तीन अन्य आरोपी सिपाही नेकीराम , सीताराम व कुलदीप सिंह की मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो चुकी है. उन्होंने बताया, अदालत ने न्यायालय में उपस्थित तत्कालीन डीएसपी कानसिंह भाटी, थानाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह, राजस्थान सशस्त्र बल के हैड कांस्टेबल जीवन राम, हैड कांस्टेबल भंवर सिंह , सिपाही हरी सिंह , शेर सिंह, छतर सिंह , पदमा राम , जगमोहन व डीग थाने के दूसरे अफसर इंस्पेक्टर रविशेखर मिश्रा आदि को दोषी करार देते हुए उनकी जमानत निरस्त कर जेल भेजने के आदेश कर दिए.

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तरकर ने बताया, इनके अलावा अदालत ने जेल में बंद भरतपुर पुलिस के सिपाही सुखराम को भी दोषी माना है. जबकि भरतपुर के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तैनात अपराध सहायक निरीक्षक कानसिंह सीरवी, हैड कांस्टेबल हरिकिशन व सिपाही गोविंद प्रसाद को निर्दोष करार दिया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट परिसर व उसके आसपास पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही. चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था. किसी भी आम आदमी को कोर्ट परिसर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई. सुनवाई के दौरान वादी पक्ष की ओर से अधिवक्ता नारायण सिंह विप्लवी एवं बचाव पक्ष की ओर से नन्दकिशोर उपमन्यु ने सुनवाई में भाग लिया. राजा मानसिंह की पुत्री कृष्णेंद्र दीपा कौर एवं उनके पुत्र आदि भी उपस्थित थे. 

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