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1 अरब 35 करोड़ की आबादी में अब दूसरे बच्चे को हुई ये दुलर्भ बीमारी, जयपुर में चल रहा इलाज

जयपुर के जे के लोन अस्पताल में स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त एक बच्चे का उपचार शुरू किया गया. यह संभवतया देश का दूसरा बच्चा है जिसको यह दवा दी जा रही है

Updated on: 31 Aug 2020, 04:10 PM

नई दिल्ली:

जयपुर के जे के लोन अस्पताल में स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त एक बच्चे का उपचार शुरू किया गया. यह संभवतया देश का दूसरा बच्चा है जिसको यह दवा दी जा रही है. रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) दवा शुरू की.  इस दवा की कीमत 4 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है और इसे आजीवन देने की आवश्यकता होती है. यह दवा इस बच्चे को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई हैं. यह भारत में दूसरी बार किसी रोगी को शुरू की गई है.

रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) 2 महीने की उम्र से बड़े बच्चो के लिए मुंह से लेने वाली एक दैनिक दवा है और सभी प्रकार के स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी के बच्चो को दी जा सकती है. यह एक स्मॉल मोलेक्यूल ओरल ड्रग है जिसे बच्चे को घर पर ही दिया जा सकता है. 7 अगस्त, 2020 को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा रिस्डिप्लाम को मंजूरी दी गई है, जो चार वर्षों के भीतर उपलब्ध स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी के लिए तीसरी दवा बनी है. इस दवा को रोच कम्पनी द्वारा बनाया गया है और इसको बनाने में पी टी सी थेरेपीटिक्स कम्पनी ने और एसएमए फाउंडेशन ने सहयोग किया है.

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यह बच्चा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नामक शहर से इस विशेष उपचार के लिए जे के लोन हॉस्पिटल जयपुर लाया गया. इस बच्चे की बीमारी के बारे में बच्चे की मां को सबसे पहले आठ महीने की उम्र पर अंदेशा हुआ क्योंकि बच्चे के पैरों की हरकत कम थी और ढीला पन था. इसके बाद जब बच्चे ने खड़ा होना और चलना शुरू नहीं किया तो पेरेंट्स ने डॉक्टर को दिखाया और जेनेटिक टेस्टिंग कराई तब इस बीमारी का पता चला.

स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (एसएमए) एक आनुवांशिक बीमारी है जो नर्वस सिस्टम और स्वैच्छिक मांसपेशी के काम को प्रभावित करती है. यह बीमारी लगभग हर 11,000 में से एक बच्चे को हो सकती है, और किसी भी जाति या लिंग को प्रभावित कर सकती है. एसएमए शिशुओं में मृत्यु का एक प्रमुख आनुवंशिक कारण है. यह एसएमए 1 जीन जो कि एक मोटर न्यूरॉन जीन है में उत्पन्न विकार कि वजह से होता है. एक स्वस्थ व्यक्ति में, यह जीन एक प्रोटीन का उत्पादन करता है जो तंत्रिकाओं के माध्यम से हमारी मांसपेशियों को नियंत्रित करता है. इसके बिना, वे तंत्रिका कोशिकाएं ठीक से काम नहीं कर सकती हैं और अंततः मर जाती हैं, जिससे दुर्बलता और कभी-कभी मांसपेशियों की घातक कमजोरी हो जाती है. एसएमए के चार प्रकार हैं - 1, 2, 3, और 4 जो कि अलग अलग उम्र पर लक्षण शुरु करते हैं. लक्षणों की गंभीरता एसएमए के टाइप पर निर्भर करती है.

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कुछ लोगों में प्रारंभिक लक्षण जन्म से पहले ही शुरु हो जाते है जबकि कुछ में यह लक्षण वयस्क होने तक स्पष्ट नहीं होते हैं. हाथ, पैर और श्वसन तंत्र की मांसपेशियां आम तौर पर पहले प्रभावित होती हैं. इसकी वजह से रोगी में निगलने की समस्या, स्कोलियोसिस इत्यादि उत्पन्न हो सकती हैं। एसएमए वाले व्यक्तियों को सांस लेने और निगलने जैसे कार्यों में कठिनाई होने लगती है. ज्यादातर मरीज रेस्पिरेटरी फेलियर की वजह से समय से पहले मर जाते हैं. इसका डायग्नोसिस लक्षणों के साथ साथ जेनेटिक टेस्टिंग करके कन्फर्म किया जा सकता है.

इलाज के अभाव में यह एसएमए टाईप 1 के बच्चे ज्यादा नहीं जी पाते और बचपन में ही इनकी मृत्यु हो जाती है. जितनी जल्दी इस बीमारी का पता लगा के इलाज शुरू किया जाता है बच्चे में उतने अच्छे रिजल्ट्स देखे जाते है. यह दावा बच्चो में एसएमए के सुडो जीन को एक्टिवेट करके एसएमएन प्रोटीन को पुनः बनाने की क्षमता रखता है. इसलिए यह उम्मीद है कि इस उपचार के बाद यह बच्चे नॉर्मल जिंदगी जी पाएंगे. इस बीमारी के निदान की सुविधा अब जयपुर के जे के लोन अस्पताल में उपलब्ध हो गई है.