सामना: शिवसेना ने ज्ञानवापी को बीजेपी के Mission-2024 से जोड़ा, कहा-इस पर भी ध्यान दें
फिलहाल वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा भाजपा ने एजेंडे पर ले लिया है, ऐसा प्रतीत होता है. प्रकरण न्यायालय में चल ही रहा है. मंदिर या मस्जिद इसका उत्खनन कोर्ट के सर्वेयर द्वारा किए जाने के बाद मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने की बात कही गई.
highlights
- सामना में शिवसेना ने बीजेपी पर बोला हमला
- ज्ञानवापी मामले को अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़ा
- कहीं भारत का हाल श्रीलंका जैसा न हो जाए!
मुंबई:
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बीजेपी पर जोरदार हमला बोला है. शिवसेना ने ज्ञानवापी मामले को लेकर बीजेपी पर राजनीति करण और अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़ा है. शिवसेना ने बीजेपी को ध्यान दिलाया है कि वो कुछ दूसरे मुद्दों पर काम करे. पढ़ें, सामना में आज का संपादकीय: 'फिलहाल वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा भाजपा ने एजेंडे पर ले लिया है, ऐसा प्रतीत होता है. प्रकरण न्यायालय में चल ही रहा है. मंदिर या मस्जिद इसका उत्खनन कोर्ट के सर्वेयर द्वारा किए जाने के बाद मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने की बात कही गई. इसी दरमियान भाजपा गुट से ऐसा प्रसारित किया जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ लखनऊ का नाम लक्ष्मणपुर करने जा रहे हैं. भाजपा के विकास का मॉडल इस तरह से चल रहा है. हनुमान चालीसा, भोंगा प्रकरण बहुत ज्यादा नहीं चला. हर बार कोई नई राम कहानी अथवा कृष्ण कथा रची जाती है. इसका मूल रामायण-महाभारत से कोई संबंध नहीं होता है. लेकिन लोगों को उकसाते रहना है, ऐसा धंधा चल रहा है.
ताजमहल की जमीन के नीचे क्या छिपा है, ये भी खोदकर निकालो, ऐसी मांग इन्हीं में से कुछ लोगों द्वारा करना ये भी मजेदार है. ताजमहल प्रकरण में कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई. उसी समय दिल्ली की जामा मस्जिद पर भी भाजपा के साक्षी महाराज ने दावा ठोंक दिया है. दुनिया कहां जा रही है और हम क्या कर रहे हैं? कैलाश पर्वत समस्त हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. कैलाश पर्वत पर भगवान शिवजी विराजमान हैं. उस कैलाश पर्वत पर चीन ने कब्जा जमा रखा है और भक्त लोग शिवजी को ताजमहल के नीचे ढूंढ़ रहे हैं. नई पीढ़ी के हाथ में वर्तमान शासक निश्चित तौर पर क्या रखनेवाले हैं? साढ़े 6 करोड़ जनसंख्या वाला देश फ्रांस ‘राफेल’ बनाकर हमें बेच रहा है और 130 करोड़ लोगों का देश रोज मंदिर-मस्जिद और अवशेषों का उत्खनन कर रहा है. इसी को कुछ लोग विकास समझते होंगे तो उन्हें साष्टांग दंडवत.
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अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है. उसके लिए बाबरी का ढांचा गिराना पड़ा. इस कार्य के लिए हजारों कारसेवकों को बलिदान देना पड़ा. अब ऐसे ही कुछ नए मुद्दों को छेड़कर देशभर में दंगे कराए जाएंगे व उसी भावना पर 2024 के चुनाव लड़े जाएंगे, ऐसा डर ममता बनर्जी ने व्यक्त किया है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या प्रकरण में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बेहद संयमित प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. ‘किसी के मन में किसी भी तरह की कट्टरपन की भावना होगी तो उसे भूलने का यह दिन है’, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था और यह उचित ही है. उसी समय सरसंघचालक को ज्ञानवापी मस्जिद व मथुरा स्थित ईदगाह के बारे में पूछा गया था. उस पर सरसंघचालक ने भी संतुलित भूमिका व्यक्त की. उन्होंने कहा, ऐतिहासिक पार्श्वभूमि का विचार करते हुए संघ एक संस्था के रूप में अयोध्या आंदोलन से जुड़ा था. इसे एक अपवाद कहा जा सकता है. अब हम फिर से मानवीय विकास को प्राथमिकता देंगे और ये आंदोलन हमारे लिए चिंता का हिस्सा नहीं होंगे, परंतु जैसे-जैसे 2024 के सार्वजनिक चुनाव करीब आ रहे हैं वैसे-वैसे भूमिकाओं की सुई अलग दिशा में घूमती दिख रही है.
मथुरा, ज्ञानवापी मस्जिद के संदर्भ में अब ‘एमआईएम’ के प्रमुख ओवैसी ने अपने ढंग से बांग दी है. एक और मस्जिद की कुर्बानी हम नहीं देंगे, ऐसी चेतावनी इन महाशय ने दी है. इसलिए 2024 के पहले निश्चित तौर पर क्या होनेवाला है व चुनाव किन मुद्दों पर लड़े जाएंगे इसका अनुमान मिलने लगा है. मथुरा के ईदगाह व वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा तनाव और दंगों के बगैर हल हो जाए इतनी ही देश की अपेक्षा है. न्यायालय से इच्छानुसार दिलासा प्राप्त करना फिलहाल शासकों के लिए कठिन है. इसलिए न्यायालय का निर्णय दोनों पक्षों के लिए बंधनकारक होगा. ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’ यह घोषणा हिंदुत्ववादियों को सुख पहुंचानेवाली है ही, परंतु कश्मीर घाटी में हिंदू पंडितों का जो दमन फिर से शुरू हुआ है, वह मुद्दा भी काशी-मथुरा जितना ही गंभीर है. उस ओर सुविधानुसार अनदेखी चल रही है.
उत्तर प्रदेश स्थित स्कूलों की दुर्गति हाल ही में सामने आई. स्कूलों में दीवार नहीं है, शौचालय नहीं है. इसलिए बच्चों की खुली जगह में कक्षा लगाने की खबर प्रकाशित हुई. मुरादाबाद के सरकारी प्राइमरी स्कूल की तरह ही अन्य स्कूलों की भी यही अवस्था है. शैक्षणिक सुविधा व गुणवत्ता में सुधार कैसे किया जाए इस पर सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में विचार करना चाहिए. मंदिर-मस्जिद व औरंगजेब के अवशेषों पर विवाद हमारे देश में कभी भी खत्म नहीं होगा क्योंकि राजनीतिक रोटी उसी आग पर सेंकी जा रही है. परंतु इस आग की अपेक्षा पेट की आग महत्वपूर्ण है. उस आग का दावानल भड़कने पर क्या होता है, उसका ‘ज्वलंत’ उदाहरण पड़ोसी श्रीलंका में नजर आता है. महंगाई, भूख, आर्थिक अराजकता से निर्माण हुई समस्याओं पर धार्मिक मुद्दे विजय पा नहीं सके इसलिए मंदिर-मस्जिद का दावानल भड़काते समय सभी को संयम बरतना चाहिए, परंतु फिलहाल संयम की ‘ऐसी-तैसी’ हो रही है. देशभर में धर्म के नाम पर जो गड्ढे खोदे जा रहे हैं, उन गड्ढों में देश के पांव न फंसे इतनी ही अपेक्षा है!
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