Mumbai News: मोबाइल गेम खेलने से रोका तो 14 साल की बच्ची ने की आत्महत्या, परिवार में पसरा मातम

Mumbai: पुलिस के अनुसार, बुधवार को जब उसके माता-पिता ने उसे मोबाइल फोन देने से मना किया, तो वह गुस्से में आकर अपने कमरे में चली गई.

Mumbai: पुलिस के अनुसार, बुधवार को जब उसके माता-पिता ने उसे मोबाइल फोन देने से मना किया, तो वह गुस्से में आकर अपने कमरे में चली गई.

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Yashodhan.Sharma
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Mumbai News: महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से एक बेहद दुखद और चौंकाने वाली घटना सामने आई है. गोरेगांव इलाके में रहने वाली 14 साल की एक किशोरी ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके माता-पिता ने उसे मोबाइल फोन पर गेम खेलने से मना कर दिया था. यह घटना समाज और अभिभावकों के लिए एक गंभीर चेतावनी बनकर सामने आई है.

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ये है मृतका की पहचान

जानकारी के मुताबिक, यह मामला गोरेगांव के आरे कॉलोनी स्थित यूनिट 22 का है. मृतक लड़की की पहचान लक्ष्मीदेवी गुलाब यादव के रूप में हुई है. पुलिस के अनुसार, बुधवार को जब उसके माता-पिता ने उसे मोबाइल फोन देने से मना किया, तो वह गुस्से में आकर अपने कमरे में चली गई. कुछ देर बाद जब परिजनों ने दरवाजा खटखटाया और कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने दरवाजा तोड़ा. अंदर जाकर देखा तो बच्ची ने कपड़े के टुकड़े से दरवाजे की बोल्ट पर फांसी लगा ली थी.

जांच में जुटी पुलिस

परिजन उसे तुरंत नजदीकी सरकारी अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने इस मामले को आकस्मिक मृत्यु के तहत दर्ज किया है और आगे की जांच की जा रही है.

यह घटना बताती है कि किस तरह आज की युवा पीढ़ी भावनात्मक रूप से कितनी असहज हो चुकी है. एक छोटी सी बात या मना करने पर आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाना इस बात का संकेत है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर ध्यान देने की जरूरत है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में तकनीक की लत बढ़ती जा रही है और जब उन्हें इससे दूर किया जाता है तो वे असहज और आक्रोशित हो जाते हैं. ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद बढ़ाएं, उनका भरोसा जीतें और मोबाइल जैसे मुद्दों पर संयम और समझदारी से व्यवहार करें.

काउंसलिंग की जरूरत

बढ़ते आत्महत्या के मामलों को देखते हुए समाज और सरकार दोनों को इस दिशा में गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है. स्कूलों में काउंसलिंग, माता-पिता के लिए जागरूकता कार्यक्रम और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना अब वक्त की जरूरत बन चुकी है.

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