इस गणपति मंदिर में होती है लालबाग से भी ज्यादा भीड़, यहां कभी नहीं होता बप्पा की मूर्ति का विसर्जन

Dagdusheth Halwai Ganpati Mandir: 'दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर' की सबसे खास बात यह है कि यहां गणपति बप्पा की प्रतिमा का कभी विसर्जन नहीं किया जाता.

Dagdusheth Halwai Ganpati Mandir: 'दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर' की सबसे खास बात यह है कि यहां गणपति बप्पा की प्रतिमा का कभी विसर्जन नहीं किया जाता.

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Pankaj R Mishra
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Dagdusheth Halwai Ganpati temple has more crowd than Lalbagh Bappa idol is never immersed here

Dagdusheth Halwai Ganpati Mandir: महाराष्ट्र के पुणे में स्थित 'दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर' हर साल गणेशोत्सव के दौरान श्रद्धालुओं का सबसे बड़ा केंद्र बन जाता है. यहां की भीड़ मुंबई के मशहूर लालबागचा राजा से भी ज़्यादा होती है. देशभर से लाखों भक्त बप्पा के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. लेकिन इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां गणपति बप्पा की प्रतिमा का कभी विसर्जन नहीं किया जाता. प्रतिमा सालभर एक ही स्थान पर विराजमान रहती है और भक्तों को पूरे वर्ष दर्शन का अवसर मिलता है. यही वजह है कि यह मंदिर पुणे की आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है.

मंदिर का इतिहास

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दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है. यह मंदिर 1893 में बनाया गया था जब दगडूशेठ हलवाई, एक मिठाई व्यापारी, ने अपने बेटे की मृत्यु के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की थी. इस मंदिर की खासियत इसकी 96 किलो सोने से सजी प्रतिमा है, जो अपनी भव्यता से हर भक्त को आकर्षित करती है. मंदिर का माहौल गणेशोत्सव के दौरान दिव्यता से भर जाता है, लेकिन प्रतिमा को विसर्जित न करने की परंपरा इसकी पहचान बन चुकी है. माना जाता है कि बप्पा पुणेवासियों के रक्षक हैं, इसलिए वे हमेशा यहीं विराजमान रहते हैं.

मंदिर में गणेशोत्सव के दौरान अत्यधिक सुरक्षा और विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं. पुणे पुलिस, महानगर पालिका और स्वयंसेवक मिलकर भक्तों की भीड़ को संभालते हैं. इस दौरान 24x7 लाइव दर्शन की सुविधा भी उपलब्ध होती है, जिससे दुनिया भर के श्रद्धालु ऑनलाइन बप्पा के दर्शन कर सकते हैं. भक्तों का मानना है कि दगडूशेठ गणपति बप्पा की कृपा से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है. यही वजह है कि हर साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है, और यह मंदिर महाराष्ट्र के गणेशोत्सव का दिल बन चुका है.

दगडूशेठ बप्पा की विसर्जन न करने की परंपरा 

दगडूशेठ बप्पा की विसर्जन न करने की परंपरा के पीछे एक गहरी मान्यता है. स्थानीय लोग मानते हैं कि बप्पा हमेशा पुणे की रक्षा के लिए यहीं विराजते हैं, इसलिए उन्हें विदा नहीं किया जाता. हर साल गणेशोत्सव के दौरान यहां भव्य सजावट, सांस्कृतिक कार्यक्रम और विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है. भक्तों की आस्था, इतिहास की गहराई और परंपरा की निरंतरता, इस मंदिर को न सिर्फ पुणे बल्कि पूरे महाराष्ट्र की आध्यात्मिक धरोहर बनाती है. दगडूशेठ बप्पा का दरबार सालभर सजा रहता है, और यहां आने वाला हर भक्त अपार शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करता है.

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