एमपी में उपचुनाव के पहले ग्वालियर-चंबल में 'रेत' पर तकरार
गोविंद सिंह का आरोप है कि चंबल और सिंध सहित अनेक नदियों में रेत का अवैध खनन जारी है, यह खनन बीजेपी नेताओं के संरक्षण में चल रहा है. साथ ही इन अवैध खनन करने वालों को पुलिस का साथ मिल रहा है. इसी के विरोध में यह सत्याग्रह किया जा रहा है.
ग्वालियर:
मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल में होने वाले उपचुनाव से पहले नया सियासी मुद्दा जोर मारने लगा है. उपचुनाव में सियासी मुद्दा बन रहा है रेत खनन. कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह नदी बचाओ सत्याग्रह कर रहे हैं, तो दूसरी ओर बीजेपी इसे महज नौटंकी करार देने के साथ अवैध खनन पर लगी रोक से उपजी बौखलाहट बता रही है. ग्वालियर-चंबल हमेशा से ही रेत खनन को लेकर चर्चा में रहा है. सरकारें किसी भी दल की रही हों, मगर रेत खनन पर रोक नहीं लग पाई. अब विधानसभा के उपचुनाव होने से पहले कांग्रेस अवैध रेत खनन को मुद्दा बना रही है और पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह 'नदी बचाओ सत्याग्रह' करने जा रहे हैं. यह सत्याग्रह 5 सितंबर से शुरू होगा और 11 सितंबर तक चलेगा.
गोविंद सिंह का आरोप है कि चंबल और सिंध सहित अनेक नदियों में रेत का अवैध खनन जारी है, यह खनन बीजेपी नेताओं के संरक्षण में चल रहा है. साथ ही इन अवैध खनन करने वालों को पुलिस का साथ मिल रहा है. इसी के विरोध में यह सत्याग्रह किया जा रहा है. डॉ. सिंह के मुताबिक, इस सत्याग्रह में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, विवेक तन्खा, मोहन प्रकाश, अजय सिंह, सज्जन वर्मा कंप्यूटर बाबा के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता जलपुरुष राजेंद्र सिंह और गाांधीवादी पी.वी. राजगोपाल हिस्सा लेंगे.
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पूर्व मंत्री डॉ.सिंह द्वारा शुरू किए जा रहे नदी बचाओ सत्याग्रह को नगरी आवास राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया महज नौटंकी करार देते हैं. भदौरिया का कहना है कि भिंड का बच्चा-बच्चा जानता है कि अवैध खनन करता कौन है, जो लोग अब तक अवैध खनन करते आए हैं, वहीं, नदी बचाओ सत्याग्रह की बात कर रहे हैं. वास्तव में बीजेपी की शिवराज सरकार ने अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी है और इसी से पूर्व मंत्री डॉ. सिंह और कांग्रेस बौखलाई हुई है, परिणामस्वरूप वह अपनी बौखलाहट को छुपाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं.
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डॉ. सिंह द्वारा आयोजित किए जाने वाले सत्याग्रह में सामाजिक कार्यकर्ता जल पुरुष राजेंद्र सिंह और एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल के शामिल के फैसले को क्षेत्रीय सामाजिक कार्यकर्ता उचित नहीं मान रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता सवाल कर रहे हैं कि अवैध खनन तो सालों से चल रहा है, मगर जब नदी में बाढ़ आई हुई है और किसान और खेत संकट में है तब सामाजिक कार्यकर्ताओं को किसी राजनीतिक दल के जाल में फंसने से बचना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम में रेत की चिंता छोड़कर खेत की चिंता करना जरूरी है. नदी बचाओ सत्याग्रह विशुद्ध रूप से राजनीतिक है, इसलिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को किसी भी राजनीतिक दल के झंडे के नीचे खड़े होने से अपने को दूर रखना चाहिए, नहीं तो उन पर सवाल भी उठेंगे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के 16 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव है.
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लिहाजा, सभी दलों और उनके नेताओं केा अपना प्रभाव दिखाने के लिए मुद्दों की दरकार है. इसी के चलते रेत के अवैध खनन पर तकरार हो रही है. चुनावों में कभी भी नदी, रेत, जंगल मुद्दा नहीं बन पाते, क्योंकि मतदाता का सीधा वास्ता इनसे नहीं होता. सियासी तौर पर भले ही सत्याग्रह कुछ दिन चर्चाओं में रहे, मगर चुनावों पर असर डाल सकेगा, ऐसा संभव नहीं लगता.
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