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मेरे पिता और ज्योतिरादित्य सिंधिया में निजी मनमुटाव कभी नहीं रहाः आकाश विजयवर्गीय

विजयवर्गीय के बेटे व स्थानीय भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय ने दावा किया है कि दोनों वरिष्ठ नेताओं में निजी मनमुटाव कभी नहीं रहा.

Updated on: 14 Aug 2020, 04:27 PM

नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की यहां तीन दिन बाद होने वाली भेंट पर सियासी आलोचकों की निगाहें गड़ गयी हैं. इस बीच, विजयवर्गीय के बेटे व स्थानीय भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय ने दावा किया है कि दोनों वरिष्ठ नेताओं में निजी मनमुटाव कभी नहीं रहा. आकाश विजयवर्गीय ने शुक्रवार को यहां संवाददाताओं से कहा, मेरे पिता और सिंधिया में निजी तौर पर मनमुटाव कभी नहीं रहा. उनके बीच के निजी संबंध हमेशा बडे़ अच्छे रहे हैं.

उन्होंने कहा, जब सिंधिया कांग्रेस में थे, तब वह और मेरे पिता राजनीतिक विचारधारा में अंतर के कारण आमने-सामने नजर आते थे. लेकिन सिंधिया के भाजपा में आने के साथ ही यह अंतर पूरी तरह खत्म हो गया है. दोनों नेताओं के बीच बहुत अच्छी मित्रता है. भाजपा के 35 वर्षीय विधायक ने कहा, सिंधिया का अपने आप में एक क्रेज (आकर्षण) है. मेरे परिजन और मेरे घर के आस-पास रहने वाले लोग उनके स्वागत के लिये उत्सुक हैं.

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सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय करेंगे मुलाकात
आकाश विजयवर्गीय ने यह बात ऐसे मौके पर कही है, जब पांच महीने पहले सूबे की कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार के पतन के साथ ही भाजपा में शामिल होने के बाद सिंधिया 17 अगस्त को पार्टी महासचिव से मिलने उनके इंदौर स्थित घर पहली बार आने वाले हैं. सिंधिया अपने इंदौर-उज्जैन प्रवास के दौरान कैलाश विजयवर्गीय और अन्य वरिष्ठ राजनेताओं से मिलेंगे. गौरतलब है कि सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय के बीच मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन (एमपीसीए) के वर्ष 2010 के चुनावों में सीधी भिड़ंत हो चुकी है.

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सिंधिया ने दी थी विजयवर्गीय को शिकस्त
सिंधिया उस वक्त केंद्र की कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री थे, तो कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश की भाजपा सरकार में इसी विभाग के काबीना मंत्री का ओहदा संभाल रहे थे. भारी खींचतान के बीच हुए इन चुनावों में सिंधिया ने एमपीसीए अध्यक्ष पद पर विजयवर्गीय को 70 वोटों से हराया था. इन चुनावों में शक्तिशाली सिंधिया खेमे ने नये-नवेले विजयवर्गीय गुट का सूपड़ा साफ करते हुए कार्यकारिणी के सभी प्रमुख पदों पर कब्जा जमाया था.