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ग्वालियर: नाटक 'खूब लड़ी मर्दानी' अब मंच पर नहीं आएगा नजर

सिंधिया के बीजेपी में आते ही उनके खिलाफ दिखाया जाने वाला ऐतिहासिक नाटक खूब लड़ी मर्दानी नाटक भी अब बंद हो गया

Updated on: 17 Jun 2021, 08:16 PM

highlights

  • ग्वालियर में हर साल होने वाला खूब लड़ी मर्दानी नाटक इस बार नहीं होगा
  • वीरांगना लक्ष्मीबाई बलिदान मेले में नाटक की प्रस्तुति 20 साल से हो रही थी
  • नाटक में आजादी से लेकर आजादी से पूर्व देश का वैभव मंच पर साकार होता था

ग्वालियर:

ग्वालियर में हर साल होने वाला खूब लड़ी मर्दानी नाटक इस बार नहीं होगा. वीरांगना लक्ष्मीबाई बलिदान मेले में इस नाटक की प्रस्तुति लगभग पिछले 20 साल से लगातार हो रही थी. उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे और लक्ष्मीबाई मेले के संस्थापक जयभान सिंह पवैया भारतीय जनता पार्टी में‌. लेकिन सिंधिया के बीजेपी में आते ही उनके खिलाफ दिखाया जाने वाला ऐतिहासिक नाटक खूब लड़ी मर्दानी नाटक भी अब बंद हो गया. नाटक में आजादी से लेकर आजादी से पूर्व देश का वैभव मंच पर साकार होता था. घोड़ों की टाप, युद्ध का दृश्य, कोड़ों की चीत्कार से खुले आकाश पर बने मंच पर सजीव चित्रण हुआ करता था. सैकड़ों की संख्या में मौजूद लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे. नाटक में महारानी लक्ष्मीबाई की वीर गाथा को बहुत ही असरदार तरीके से कलाकारों के द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता था.

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ये है कहानी

डॉ.चंद्रप्रकाश सिंह सिकरवार द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक की शुरुआत देश के वैभव से हुई. इसके बाद नाटक फ्लेशबैक में जाता है। उसमें दिखाया गया कि जहांगीर से भारत में व्यापार करने की अनुमति अंग्रेज लेते हैं और उसके बाद देश पर शासन करने का षड़्यंत्र रचते हैं. इसके बाद छत्रपति शिवाजी का प्रवेश होता है शिवाजी मुगलों के साथ युद्ध करते हुए अपनी वीरता को प्रदर्शित करते हैं. अगले दृश्य में देखते हैं कि कैसे धीरे-धीर मुगलों व मराठों की शक्ति कमजोर पड़ती है और अंग्रेज भारत पर अपना अधिकार जमाने लगते हैं. नाटक में महारानी लक्ष्मीबाई का विद्रोह एवं उसके उपरान्त लक्ष्मीबाई के बचपन से लेकर उनकी घुडसवारी, तलवारबाजी और प्रबंध कौशल को दिखाया जाता था.

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झांसी के राजा गंगाधर राव से विवाह का दृश्य

 इसके बाद झांसी के राजा गंगाधर राव से विवाह का दृश्य , विवाह के बाद महाराज की मृत्यु के बाद महारानी झांसी को अपने कब्जे में ले लेती है और अंग्रजों के साथ संघर्ष करती है. इसके बाद महारानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर किले पर अपना अधिकार करती है. इस दौरान उन्होंने गोरखी पर 18  दिनों तक राज किया. अंत में निर्णायक युद्ध में गंगादास की शाला में वे शहीद हो जाती हैं. इस नाटक की खास बात यह थी कि इसमें सिंधिया की छवि को अंग्रेजों के पक्ष में बताया जाता था.