एमपी: हीरे की चाहत में बक्सवाहा जंगल में बसे जीवन पर संकट
धीरे-धीरे रेगिस्तान में बदलते बुंदेलखंड के छतरपुर जिले का बक्स्वाहा क्षेत्र का हरा-भरा जंगल इस इलाके की पहचान है, मगर अब इसी जंगल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, वास्तव में यह सिर्फ जंगल ही नहीं है बल्कि यहां जीवन का बसेरा है.
भोपाल:
धीरे-धीरे रेगिस्तान में बदलते बुंदेलखंड के छतरपुर जिले का बक्स्वाहा क्षेत्र का हरा-भरा जंगल इस इलाके की पहचान है, मगर अब इसी जंगल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, वास्तव में यह सिर्फ जंगल ही नहीं है बल्कि यहां जीवन का बसेरा है. बुंदेलखंड के इस जंगल में हीरे का भंडार है और जमीन के भीतर दबे हीरे की चाहत में जमीन के ऊपर नजर आने वाले हीरा रूपी जंगल को नष्ट करने की कवायद चल पड़ी है. इसका विरोध भी चौतरफा शुरु हो चुका है. कोरोना काल में गहरे संकट ने यह बता दिया है कि तिजोरिओं में बंद सोना, चांदी, हीरा को बेचकर लोगों ने प्राणवायु ऑक्सीजन पाई है और इस ऑक्सीजन का वास्तविक उत्पादन केंद्र जंगल ही है. अब हीरा पाने की चाहत में इस ऑक्सीजन के पावर हाउस को खत्म करने की मुहिम चल पड़ी है. यहां पचास तरह के पेड़ हैं, तो कई तरह के वन्य प्राणी व पक्षी का ठिकाना है यह.
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पर्यावरणविद और बुंदेलखंड के जानकार इग्नू के पूर्व डायरेक्टर डॉ के एस तिवारी कहते हैं, बक्सवाहा के जंगल सिर्फ पेड़ों का एक स्थल नहीं है, बल्कि यहां जिंदगी और संस्कृति दोनों का बसेरा है. वास्तव में इस जंगल में सिर्फ पेड़ नहीं है बल्कि यहां जिंदगी बसती है. हजारों परिवारों की आजीविका यहां के पेड़ों पर उगने वाली वनस्पति से चलती है तो दूसरी ओर जंगल पर तरह-तरह के वन्य प्राणी, जीव-जंतु पक्षी आश्रित हैं. जंगल के उजड़ने पर इन सभी का जीवन संकट में पड़ जाएगा. जो सैकड़ों साल में तैयार की गई धरोहर कुछ सालों में नष्ट कर दी जाएगी. जंगल के जल स्रोत खत्म हो जाएंगे तो इस इलाके में जल संकट और गहरा जाएगा. वैसे ही यहां पानी का संकट किसी से छुपा नहीं है.
वे आगे कहते हैं कि यह ऐसा जंगल है जिससे वनवासी संस्कृति जुड़ी है, रहन-सहन जुड़ा है, परंपराएं जुड़ी हैं, कुल मिलाकर इस जंगल के नष्ट होने से ईको सिस्टम छिन्न भिन्न हो जाएगा.
छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरो का भंडार है और यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं. इसकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है. जिस निजी कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है. ऐसा अगर होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों पर असर पड़ेगा.
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बक्सवाहा के जंगल की खूबी यह है कि यहां सागौन के अलावा पीपल, तेंदू, जामुन, महुआ बहेड़ा, अर्जुन सहित अनेक प्रजातियों के पेड़ हैं. इसके साथ ही यहां कई प्रजातियों के जानवर व पक्षी भी हैं. कुल मिलाकर यहां संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम है.
क्षेत्रीय पत्रकार अशोक गुप्ता का कहना है कि, "सरकारों ने कभी भी सभ्यता और संस्कृति की चिंता नहीं की है, जब भी कुछ करोड़ रुपये की आमदनी की बात आई सरकारों ने सबकुछ दांव पर लगा दिया. बक्सवाहा के मामले में भी यही कुछ होने जा रहा है. हजारों साल में जो जंगल विकसित हुए उन्हें हीरे की खातिर खत्म किए जाने की तैयारी है. इस इलाके को न तो कुछ मिलेगा, हां सरकार को कुछ राजस्व जरुर मिल जाएगा. कोरोना के संक्रमण ने बता दिया है कि अगर ऑक्सीजन ही नहीं होगी तो जिंदगी नहीं बचा पाओगे और सरकार ही इस ऑक्सीजन के मुख्य स्त्रोत को खत्म करने की पटकथा लिख रही है."
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