साहिबगंज में दो बूंद पानी के लिए जद्दोजहद, झरने का गंदा पानी पीते हैं ग्रामीण

साहिबगंज में चंपा पहाड़ गांव के दर्जनों ग्रामीण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. सालों से यहां के लोग झरने का गंदा पानी पीकर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

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Jatin Madan
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ग्रामीणों ने खटखटाया प्रशासन का दरवाजा.( Photo Credit : News State Bihar Jharakhand)

साहिबगंज में चंपा पहाड़ गांव के दर्जनों ग्रामीण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. सालों से यहां के लोग झरने का गंदा पानी पीकर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. सिर पर पानी से भरे बर्तन का बोझ तो उठा ले, लेकिन कंधे पर शासन-प्रशासन के झूठे वादों और खोखले दावों का बोझ ज्यादा भारी लगता है. राज्य को बने 2 दशक से ज्यादा का समय बीत गया. कई सरकारे आई और गई, लेकिन आदिवासियों की हालत आज भी वैसी ही है... जैसे दशकों पहले थी. विकास की मुख्यधारा से जुड़ना तो दूर आदिवासी समुदाय सड़क, पानी और बिजली जैसी सुविधाओं से भी वंचित है. कुछ ऐसा ही नजारा है साहिबगंज में राजमहल की पहाड़ियों पर रहने वाले ग्रामीणों का. झारखंड सरकार की ओर से संरक्षित ये जनजातीय समुदाय झरने का गंदा पानी-पीने को मजबूर है. पानी की किल्लत ग्रामीणों के सिरदर्द का कारण बन गई है.

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बोरियों विधानसभा क्षेत्र के चंपा पहाड़ गांव के दर्जनों ग्रामीण पानी की किल्लत से दो चार हो रहे हैं. पानी की सुविधा ना होने के चलते ग्रामीण झरने का गंदा पानी पीकर गुजारा करते हैं. बस्ती में ना ही चापाकल है और ना ही कुआं. गर्मी के दिनों में तो आस-पास के कुएं और नदी का पानी भी सूख जाता है. जिसके बाद मजबूरन महिलाओं को करीब तीन किलोमीटर दूर जाकर पानी लाना पड़ता है. हालांकि परेशानी सिर्फ पानी की नहीं है. इस गांव में आवाजाही के लिए सड़क भी नहीं है.  ना ही पानी के बहाव के लिए किसी नाले का इंतजाम. ऐसे में ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया है. लिहाजा परेशान ग्रामीणों ने जिला प्रशासन का दरवाजा खटखटाया और डीसी से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपते हुए अपनी समस्याओं से रूबरू कराया.

वहीं, लोगों की परेशानियों को सुनकर डीसी ने आश्वासन देते हुए कहा कि जल्द से जल्द सभी जनसमस्याओं का समाधान किया जाएगा. इसके आलावा डीसी ने ग्रामीणों को ये भी भरोसा दिलाया है कि वो खुद चंपा पहाड़ पहुंचकर हालातों का जायजा लेंगे और समस्याओं का निदान करेंगे.

झारखंड राज्य का गठन ही आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था, लेकिन प्रदेश में इन्हीं आदिवासियों की हालत आज खराब है. हैरत की बात ये कि ग्रामीणों को अपनी परेशानियां खुद जाकर प्रशासनिक अधिकारियों को बतानी पड़ रही है. क्योंकि उनकी सुध लेने वाला कोई है ही नहीं. जनप्रतिनिधि चुनावों के बाद गांव की गलियों का रास्ता ही भूल जाते हैं और अधिकारी इनकी परेशानियों को जानने की जहमत नहीं उठाते हैं.

रिपोर्ट : गोविंद ठाकुर

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HIGHLIGHTS

  • दो बूंद पानी के लिए जद्दोजहद
  • झरने का गंदा पानी पीते हैं ग्रामीण
  • लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं
  • ग्रामीणों ने खटखटाया प्रशासन का दरवाजा 
  • आश्वासन तो मिला...  खत्म होगी समस्या?

Source : News State Bihar Jharkhand

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