सरायकेला में मूर्तिकारों के सामने रोजगार का संकट, शासन-प्रशासन से मदद की उम्मीद
सरायकेला में मूर्तिकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. त्योहारी सीजन के बाद भी मूर्तिकारों को ना तो मुनाफा हो रहा है और ना ही सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद मिल रही है.
highlights
- मूर्तिकारों के सामने रोजगार का संकट
- आर्थिक तंगी से जूझ रहे मूर्तिकार
- पूंजी ना होने से नहीं बना पा रहे मूर्तियां
- शासन-प्रशासन से मदद की उम्मीद
Saraikela:
सरायकेला में मूर्तिकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. त्योहारी सीजन के बाद भी मूर्तिकारों को ना तो मुनाफा हो रहा है और ना ही सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद मिल रही है. आलम ये है कि मूर्तिकार अब खुद को इस पारंपरिक व्यवसाय से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं. हाथों में ऐसी कला कि मिट्टी और पत्थर में आकार बना दें और रंगों की कारीगरी से बेजान आकार में जान डाल दें. त्याहोरा का सीजन आ गया है. लिहाजा मूर्तिकार उम्मीद भरी निगाहों से बाजार की ओर देख रहे हैं. इस उम्मीद में कि शायद इस बार बाजार की रौनक से उनके घर में भी उजाला हो जाए.
आर्थिक तंगी से जूझ रहे मूर्तिकार
झारखंड में सरायकेला के ईचागढ़ प्रखंड कार्यालय से महज पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित कुड़कतुपा गांव हैं. जहां सैकड़ों परिवार मूर्तियां बनाने का काम करते हैं. मिट्टी और पत्थर से मूर्तियां तराशते हैं, लेकिन अब मूर्ति निर्माण के सहारे जिंदगी बिताना मुश्किल हो रहा है. सरकार की अनदेखी और मेहनत के हिसाब से मुनाफा ना मिलने से परेशान ये परिवार रोजगार की तलाश में हैं.
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पूंजी ना होने से नहीं बना पा रहे मूर्तियां
कुड़कतोपा गांव के सैकड़ों परिवार जंगल से पत्थर चुनकर लाते हैं, और छेनी और हथौड़ी की मदद से मूर्तियां तराशते हैं. इस गांव के छोटे-छोटे बच्चे से लेकर, महिला, पुरुष, बुजुर्ग सभी इसी व्यवसाय से जुड़े हैं, लेकिन अब इन मूर्तिकारों का पारंपरिक व्यवसाय से मोह भंग हो रहा है. क्योंकि दिन रात मेहनत कर ग्रामीण मूर्तियां तो बनाते हैं, लेकिन उन्हें मुनाफा नहीं मिलता. कोलकाता, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और पड़ोसी राज्यों से आए व्यापारी गांव आकर कम कीमत पर मूर्ति खरीदते हैं और इसे बाजारों में ऊंची कीमतों पर बेचते हैं. यानी व्यापारी को तो अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है, लेकिन मूर्तिकार लागत भी मेहनताना भी बामुश्किल निकाल पाते हैं.
शासन-प्रशासन से मदद की उम्मीद
मूर्तिकारों के पास पूंजी नहीं है. लिहाजा अब वो मूर्ति निर्माण में समर्थ भी नहीं है. ऐसे में इन परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. सरकार की ओर से भी उन्हें कोई मदद मिल नहीं रही. ऐसे में अब ये रोजगार की तलाश में जुटे हैं ताकि काम कर कम से कम परिवार का पालन-पोषण तो कर सके. केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना से इन परिवारों की आस जरूर जगी है, लेकिन योजना के क्रियान्वयन और अंतिम व्यक्ति तक योजना को पहुंचाने में काफी समय लगेगा. उम्मीद है कि उससे पहले राज्य सरकार और प्रशासन इन परिवारों के लिए कुछ पहल करे.
रिपोर्ट : बिरेंद्र मंडल
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