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बोकारो में 70 दिनों से ग्रामीणों का अनिश्चितकालीन धरना, शासन-प्रशासन के खिलाफ खोला मोर्चा

बोकारो में ग्रामीण ठंड में ठिठुरने को मजबूर हैं. दरअसल जिले में 26 सितंबर को तलगड़िया-तुपकाडीह रेलवे लाइन के दोहरीकरण के लिए गांव के 16 घरों को तोड़ दिया गया.

Updated on: 05 Dec 2022, 05:29 PM

highlights

.70 दिनों से ग्रामीणों का अनिश्चितकालीन धरना
.रेलवे लाइन के दोहरीकरण के लिए तोड़े गए 16 घर
.ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन के खिलाफ खोला मोर्चा
.पूर्व विधायक अरूप चटर्जी ने जाना ग्रामीणों का हाल
.रेलवे से ग्रामीणों को मुआवजा देने की अपील की

Bokaro:

बोकारो में ग्रामीण ठंड में ठिठुरने को मजबूर हैं. दरअसल जिले में 26 सितंबर को तलगड़िया-तुपकाडीह रेलवे लाइन के दोहरीकरण के लिए गांव के 16 घरों को तोड़ दिया गया. इससे दर्जनों लोग बेघर हो गए, तब से ग्रामीण टूटे घर के मलबे पर बैठकर अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं. ग्रामीणों को धरना दिए 70 दिन हो गए हैं, लेकिन अभी तक उनकी मांगों पर सुनवाई नहीं हुई है. बोकारो का न्यूनतम तापमान 12 डिग्री सेल्सियस के करीब है. लोग शाम होते ही घरों में दुबक जाते हैं, लेकिन शहर की परछाई में बसे धनवरी गांव के दर्जनों लोग ठंड में खुले आसमां के नीचे रात गुजारने को बेबस हैं. यह बेबसी प्रकृति ने नहीं बल्कि रेलवे प्रशासन ने दी है.

बोकारो में 26 सितंबर को तलगड़िया-तुपकाडीह रेलवे लाइन के दोहरीकरण के लिए गांव के 16 घरों को तोड़ दिया गया. इससे दर्जनों लोग बेघर हो गए, तब से ग्रामीण टूटे घर के मलबे पर बैठकर 70 दिनों से अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं. बच्चे, बुजुर्ग सभी अपने हक के लिए धरने पर बैठे हैं. किसी का काम छूटा है, तो किसी की पढ़ाई, लेकिन तमाम मुश्किलों के बाद भी ग्रामीणों का हौसला पस्त नहीं हुआ है. लोगों का कहना है कि 70 तो क्या जरूरत पड़ी तो सात हजार दिन भी धरना देंगे. हारेंगे नहीं, बरसात को शिकस्त दी है. अब ठंड को भी चुनौती देंगे. महिलाएं भी धरने में बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं. आक्रोशित महिलाओं का कहना है कि जिस तरह उनकी सुध नहीं ली जा रही उसी तरह वो भी चुनाव का बहिष्कार करेंगे.

बेघर हुए ग्रामीणों की परेशानी सुनने निरसा के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी मौके पर पहुंचे. जहां उन्होंने ग्रामीणों का हालचाल जाना और रेलवे से मुआवजा देने की अपील की. पूर्व विधायक ने साथ ही सर प्लस जमीन को वापस करने के लिए बने कानून को लागू करने की मांग भी की. साथ ही ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि वो इस मामले को लेकर सरकार तक जाएंगे.

धरना देने वाले ग्रामीणों को विश्वास है कि जीत उनकी होगी. सरकार उनकी जरूरी सुनेगी. इसी आस में ग्रामीण दिन-रात धरना दे रहे हैं. दूसरे गांव से जरूरी सामान मांगकर जैसे तैसे गुजर-बसर कर रहे हैं. इन लोगों के पास अब ना तो उनका आशियाना है और ना ही उनकी पूंजी. है तो बस एक आस, कि एक दिन उनकी ये पुकार सरकार तक जरूर पहुंचेगी और उन्हें उनका हक मिलकर रहेगा. 

रिपोर्ट : संजीव कुमार

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