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पाक खुफिया एजेंसी ISI की नापाक साजिश, कश्मीर में आम नागरिकों को निशाना बनाने का फरमान

कश्मीरी अवाम और सुरक्षाबलों को आमने-सामने लाने का षड्यंत्र किया जा रहा है. लेकिन ऐसा होने नहीं दिया.

Updated on: 30 Nov 2021, 07:31 PM

highlights

  • कश्मीरी अवाम और सुरक्षाबलों को आमने-सामने लाने का षड्यंत्र किया जा रहा
  • आईएसआई (ISI) हमेशा भारत में रक्तपात मचाने का षडयंत्र करता रहता है
  • साल 2018 में आतंकियों ने कुल 318 आतंकी वारदात को अंजाम दिया गया था

नई दिल्ली:

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) हमेशा भारत में रक्तपात मचाने का षडयंत्र करता रहता है. भारत में वह हिंसा के माध्यम से उथल-पुथल मचाने का सपना देखता रहता है. और इसके लिए वह पाक प्रशिक्षित आतंकियों को कश्मीर घाटी में भेजने का अवसर तलाशता रहता है. घाटी में सक्रिय आतंकी समूह आईएसआई के इशारे पर हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. अब तक आईएसआई निर्देशित आतंकी कश्मीर में  सेना, सुरक्षाबलों और पुलिस पर हमला करते थे. लेकिन अब आईएसआई ने अपनी रणनीति बदल दी है.

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने घाटी में मौजूद अपने ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGW) को ये हिदायत दी कि अगर किसी जगह पर सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हो रही है तो वहां मौजूद आम कश्मीरियों को निशाना बनाया जाए. कम से कम दस लोगों को मारने के लिए कहा गया जिससे ऑपरेशन के बाद वहां के लोगों को सुरक्षाबलों के खिलाफ भड़काया जा सके.

ऐसा कर बंद हो चुके पत्थरबाजी के दौर दोबारा से शुरू करने की साजिश है. कश्मीरी अवाम और सुरक्षाबलों को आमने-सामने लाने का षड्यंत्र किया जा रहा है. लेकिन ऐसा होने नहीं दिया. सेना के ऑपरेशन और लोगों का समर्थन न मिलने के चलते आतंकियों की कमर टूट गई है. अगर आंकड़ों की बात करें तो साल 2018 के मुकाबले इस साल आतंकी घटनाओं को आतंकी अंजाम कम दे पाए.

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साल 2018 में आतंकियों ने कुल 318 आतंकी वारदात को अंजाम दिया गया था, लेकिन साल 2021 में 121 घटना रिपोर्ट हुईं. वहीं ऑपरेशन की जगह पर ओजीडब्लू की मदद से लोगों की भीड़ जुटाना और फिर पत्थरबाजी करवाकर ऑपरेशन में बाधा डालने की कोशिशों में भी जबरदस्त कमी आई है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में पत्थरबाजी की 202 घटनाएं सामने आई थीं, जबकि इस साल सिर्फ 39 रिपोर्ट हुई हैं.

वहीं ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों ने पूरा खयाल रखा जिससे आम लोगों को नुकसान न हो. शायद ये ही वजह है कि एनकाउंटर में आम नागरिकों बहुत कम नुकसान होता है. आगर आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2018 में सेना के ऑपरेशन के दौरान क्रॉस फायरिंग में 24 स्थानीय नागरिकों की मौत हुई और 49 घायल हुए थे जबकि इस साल 2021 में एनकाउंटर के दौरान क्रॉसफायर में महज 2 आम लोगों की जान गयी और 2 को मामूली चोट आई.

पहले हताहतों की संख्या इसलिए ज्यादा दर्ज हुई क्योंकि आतंकी ऑपरेशन की जगह से भागकर बचने के लिए घर में छिप जाते थे. दूसरे, एनकाउंटर साइट पर लोगों की भीड़ ज्यादा होती थी लेकिन पिछले दो साल में इसमें जबरदस्त कमी आई. अब न तो आम लोगों के घरों में आतंकियों को छिपने की जगह नहीं मिलती है. साथ ही आतंकी और उनके ओजीडब्लू किसी भी तरह से लोगों को एनकाउंटर साइट पर इकट्ठा नहीं कर पा रहे हैं.