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बुजुर्ग के अंतिम संस्कार के बाद अस्पताल से आया फोन, हैरान हो गए परिजन

शव को कोविड-19 (Covid-19) के प्रोटोकॉल के मुताबिक प्लास्टिक में लपेटा गया था और वे शव का चेहरा नहीं देख पाए थे. बहरहाल, गुजरात कैंसर शोध संस्थान ने कहा है कि उसने व्यक्ति की शिनाख्त में कोई गलती नहीं की है. इसी अस्पताल में बुजुर्ग की मौत हुई थी.

Updated on: 01 Jun 2020, 09:32 AM

अहमदाबाद:

गुजरात (Gujrat) के अहमदाबाद में एक परिवार को 71 वर्षीय बुजुर्ग का अंतिम संस्कार करने के कुछ घंटों बाद, अस्पताल फोन से आता है और कहा जाता है कि बुजुर्ग की जांच रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई है और उन्हें गैर कोविड वार्ड में स्थानांतरित किया जा सकता है. इस कॉल के बाद परिवार दहशत में आ गया और मृत देवराम भोसीकर के रिश्तेदारों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई, क्योंकि शव को कोविड-19 (Covid-19) के प्रोटोकॉल के मुताबिक प्लास्टिक में लपेटा गया था और वे शव का चेहरा नहीं देख पाए थे. बहरहाल, गुजरात कैंसर शोध संस्थान ने कहा है कि उसने व्यक्ति की शिनाख्त में कोई गलती नहीं की है. इसी अस्पताल में बुजुर्ग की मौत हुई थी.

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भोसीकर के दामाद निलेशभाई ने बताया कि मैंने 28 मई की दोपहर को अपने ससुर को जीसीआरआई के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया था. वहां से, उन्हें कोविड वार्ड में भेजा गया और उनके नमूनों को जांच के लिए भेज दिया गया. उन्होंने कहा कि दूसरे दिन मुझे अस्पताल से फोन आता है और कहा जाता है कि वह ठीक हैं लेकिन थोड़ी देर बाद फिर फोन आता है और इस बार कहा जाता है कि मेरे ससुर की हालत नाजुक है. मैंने वीडियो कॉल पर बात कराने पर जोर दिया, जब उन्होंने मुझे कहा कि उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है. इसके कुछ देर बाद अस्पताल से फोन आता है और मुझे मेरे ससुर की मौत की जानकारी दी जाती है.

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उन्होंने बताया कि मौत के वक्त परिवार को कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट नहीं मिली थी. परिवार को 29 मई की रात को अस्पताल से फोन आता है और उन्हें कहा जाता है कि भोसीकर की जांच रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई है और उन्हें अस्पताल के गैर–कोविड वार्ड में स्थानांतरित किया जा सकता है. निलेश ने कहा कि इसके बाद, हम हैरत में पड़ गए कि क्या हमने किसी और शख्स का अंतिम संस्कार तो नहीं कर दिया, क्योंकि हम उनका चेहरा नहीं देख पाए थे. जीसीआरआई के निदेशक शशांक पांडे ने एक बयान में कहा कि इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि परिवार को किसी और व्यक्ति का शव दे दिया गया है. पांडे ने कहा कि देवराम भोसीकर को 28 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उन्हें खांसी थी तथा सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. उनके रिश्तेदारों ने बताया कि वह चार दिन से इससे पीड़ित थे.

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एक्स रे के मुताबिक उनके निमोनिया से पीड़ित होने की आशंका थी और उनकी हालत नाजुक थी. उन्होंने बताया कि कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत हमने कोरोना वायरस की जांच के लिए उनके नमूने लिए, लेकिन रिपोर्ट आने से पहले ही 29 मई को उनकी मौत हो गई. उनका मामला कोरोना वायरस संदिग्ध के तौर पर रखा गया. इसलिए प्रोटोकॉल के तहत उनका अंतिम संस्कार किया गया. पांडे ने बताया कि रिपोर्ट आने पर इसकी जानकारी परिवार को दी गई और नियंत्रण कक्ष में मौजूद व्यक्ति को मरीज की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं थी. इसलिए उन्होंने मरीज को कोविड वार्ड से सामान्य वार्ड में भेजने की बात परिवार से कही.